एक बार संसद संविधान के अनुच्छेद 342-ए और 366 (26) सी के संशोधन पर मुहर लगा देगी, तो इसके बाद राज्यों के पास फिर से ओबीसी सूची में जातियों को अधिसूचित करने का अधिकार होगा। गत जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें सरकार ने कोर्ट के 5 मई के आरक्षण मामले में दिए फैसले पर फिर से विचार करने का निर्देश दिया था।
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बता दें कि गत जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 324-ए की व्याख्या के आधार पर मराठा समुदाय के लिए कोटा को खत्म करने के अपने 5 मई के आदेश के खिलाफ केंद्र की समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया था। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के लिए वर्ष 2018 में संविधान में 102वें संशोधन के जरिए अनुच्छेद 324-ए लाया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने तीन और दो के बहुमत से 102वें संशोधन को सही बताया था। बहुमत से 102वें संविधान संशोधन को वैध करारा दिया गया, लेकिन कोर्ट ने कहा कि राज्य सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग यानी एसईबीसी की सूची तय नहीं कर सकती बल्कि, केवल राष्ट्रपति उस सूची को अधिसूचित कर सकते हैं।
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वहीं, 5 मई को मराठा आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा और नौकरी क्षेत्र में मराठा आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि मराठा समुदाय को कोटा के लिए सामाजिक, शैक्षणिक रूप से पिछड़ा घोषित नहीं किया जा सकता है। यह वर्ष 2018 के महाराष्ट्र राज्य कानून समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि मराठा आरक्षण 50 प्रतिशत सीमा का उल्लंघन है।