मानसून सत्र का अंतिम सप्ताह सोमवार से शुरू हो गया। इस सत्र में मोदी सरकार पहले दिन कई अहम विधायी कार्यों को निपटाने की तैयारी में है। इसी कड़ी में सरकार राज्यों को ओबीसी सूची (OBC Reservation Bill) बनाने का अधिकार देने वाला 127वां संविधान संशोधन विधेयक पेश करेगी। हालांकि, पेगासस सहित कई और मुद्दे हैं, जिन पर विपक्ष हंगामा करना जारी रख सकती है।
हालांकि, मोदी सरकार को तमाम अड़चनों के बाद भी राज्यों को ओबीसी सूची बनाने का अधिकार देने वाले 127वें संशोधन विधेयक को पारित करने में दिक्कत नहीं होगी। ऐसा इसलिए कि कोई राजनीतिक दल आरक्षण संबंधी विधेयक का विरोध नहीं करेगा। मगर हंगामे के बीच संविधान संशोधन विधेयक को पारित कराना सरकार के लिए कुछ कठिन जरूर होगा। हाल ही में कैबिनेट ने इस विधेयक को मंजूरी दे दी थी। इससे पहले, बीते मई महीने में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में राज्यों के ओबीसी सूची तैयार करने पर रोक लगा दी थी। इसके बाद यह विधेयक लाया जा रहा है। इससे राज्यों को यह अधिकार एक बार फिर मिल जाएगा।
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संसद में संविधान के अनुच्छेद 342-ए और 366 (26) सी के संशोधन पर अगर मुहर लग जाती है, तो इसके बाद राज्यों के पास ओबीसी सूची में अपनी मनमुताबिक जातियों को अधिसूचित करने का अधिकार मिल जाएगा। महाराष्ट्र में मराठा समुदाय, हरियाणा में जाट समुदाय, गुजरात पटेल समुदाय और कर्नाटक में लिंगायत समुदाय को ओबीसी वर्ग में शामिल होने का मौका मिल सकता है। लंबे समय से ये जातियां आरक्षण की मांग कर रही हैं। इनमें मराठा समुदाय को महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस की सरकार ने आरक्षण भी दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने गत 5 मई को इसे खारिज कर दिया था। बता दें कि गत जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 324-ए की व्याख्या के आधार पर मराठा समुदाय के लिए कोटा को खत्म करने के अपने 5 मई के आदेश के खिलाफ केंद्र की समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया था। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के लिए वर्ष 2018 में संविधान में 102वें संशोधन के जरिए अनुच्छेद 324-ए लाया गया।
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सुप्रीम कोर्ट ने तीन और दो के बहुमत से 102वें संशोधन को सही बताया था। बहुमत से 102वें संविधान संशोधन को वैध करारा दिया गया, लेकिन कोर्ट ने कहा कि राज्य सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग यानी एसईबीसी की सूची तय नहीं कर सकती बल्कि, केवल राष्ट्रपति उस सूची को अधिसूचित कर सकते हैं। विभिन्न राज्यों में आरक्षण का प्रतिशत
हरियाणा और बिहार ईडब्ल्यूएस कोटे के साथ 60 प्रतिशत, तेलंगाना सरकार 50 प्रतिशत, गुजरात में ईडब्ल्यूएस कोटे के साथ 59 प्रतिशत, केरल में 60 प्रतिशत, तमिलनाडु में 69 प्रतिशत है।
हरियाणा और बिहार ईडब्ल्यूएस कोटे के साथ 60 प्रतिशत, तेलंगाना सरकार 50 प्रतिशत, गुजरात में ईडब्ल्यूएस कोटे के साथ 59 प्रतिशत, केरल में 60 प्रतिशत, तमिलनाडु में 69 प्रतिशत है।