रेप केस में तहलका के पूर्व संपादक तरुण तेजपाल को बड़ी राहत, 8 वर्ष बाद गोवा की कोर्ट ने किया बरी
कावेरी के संगम स्थल पर अस्थियां विसर्जित
दरअसल प्रो सावित्री विश्वनाथन एक तमिल ब्राह्मण थीं और रिटायर्ड होने के बाद वे बेंगलुरु में बस गई थीं। हाल ही में वे कोरोना की चपेट में आई थीं। कई दिनों तक कोरोना वायरस से जूझने के बाद उनकी मौत हो गई। इस दौरान उनका कोई भी रिश्तेदार अंतिम संस्कार में नहीं पहुंच सका। इसके बाद कांग्रेस के राज्यसभा सांसद डॉ सैयद नासिर हुसैन खुद सामने आए। उन्होंने प्रो सावित्री का हिंदू परंपराओं के अनुसार अंतिम संस्कार किया। इसके बाद उन्होंने मांड्या जिले के कावेरी के संगम स्थल पर दिवंगत प्रोफेसर की अस्थियां विसर्जित कीं।
केरल में थम रही है कोरोना की रफ्तार: 24 घंटे में 30,491 नए केस, 128 की मौत
मेरी मां के समान थीं प्रोफेस सावित्री
जापानी भाषा, इतिहास और राजनीति की शोधकर्ता 80 वर्षीय प्रोफेसर सावित्री विश्वनाथन दिल्ली विश्वविद्यालय में चीनी और जापानी अध्ययन विभाग की पूर्व प्रमुख थीं। रिटायरमेंट के बाद वह बेंगलुरु चली गई थीं। इस दौरान राज्यसभा सांसद ने कहा वह एक पारिवारिक मित्र से अधिक थी,मेरी मां की तरह थीं। उनके सभी रिश्तेदार विदेश में रह रहे थे और किसी का भी यहां आना मुमकिन न था। ऐसे में उन्होंने खुद अंतिम संस्कार करने का फैसला लिया। प्रोफेसर अपने पति से अलग को चुकी थीं और उनके बच्चे भी नहीं थे। हुसैन के मुताबिक सावित्री ने जपानी भाषा के प्रचार में अहम योगदान दिया है।