एसकेएमसीएच ( SKMCH ) मेडिकल कॉलेज के अधीक्षक सुनील शाही ने बुधवार को बताया कि दो जून से लेकर अब तक एक्यूट इंसेफेलाइटिस से पीड़ित 86 बच्चों को एडमिट किया गया है। इसमें 31 बच्चों की मौत हो चुकी है, जबकि कई के हालत बेहद गंभीर हैं। उन्होंने कहा कि जनवरी से लेकर 2 जून तक 13 मामले सामने आए थे, जिसमें 3 की मौत हो गई थी। इस घटना ने एक बार फिर बिहार झकझोर दिया है।
डॉक्टर्स के मुताबिक, 15 वर्ष तक की उम्र के बच्चे इस बीमारी के शिकार हो रहे हैं। इस कारण मरने वालों में अधिकांश की आयु एक से सात वर्ष के बीच है। इस बीमारी का शिकार आमतौर पर गरीब परिवार के बच्चे होते हैं। डॉक्टर्स का कहना है कि इस बीमारी का मुख्य लक्षण तेज बुखार, उल्टी-दस्त, बेहोशी और शरीर के अंगों में रह-रहकर कंपन होना है।
डॉक्टर सुनील शाही ने बताया कि हालात की गंभीरता को देखते हुए सात सदस्यीय केंद्रीय दल बुधवार को मुजफ्फरपुर पहुंच रहा है। केंद्रीय दल स्थानीय डॉक्टरों के साथ मिलकर इस बात की जांच करेगा कि बच्चों की मौत के क्या कारण हैं।
वहीं, बिहार के प्रधान सचिव संजय कुमार का कहना है कि 80 फीसदी मौतों में हाइपोग्लाइसीमिया का शक है। इस बीच राज्य सरकार ने राज्य के 12 जिलों में 222 प्राइमरी हेल्थ सेंटर्स को अलर्ट कर दिया है। साथ ही अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वे मरीजों के इलाज में किसी भी तरह की कोई लापरवाही नहीं बरतें।
बिहार सरकार की एक टीम भी मुजफ्फरपुर पहुंची है, जो स्थिति पर नजर बनाए हुए है। संजय कुमार ने बताया कि उन्होंने खुद प्राइमरी हेल्थ सेंटर्स की स्थिति का जायजा लिया है। उनका कहना है कि सभी इंतजाम मानकों के मुताबिक हैं। एसकेएमसीएच के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. जी. एस. सहनी ने बताया कि अब तक बीमार बच्चों का उपचार बीमारी के लक्षण को देखते हुए किया जा रहा है।
राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय का कहना है कि मुजफ्फरपुर में 11 बच्चों की मौत हुई, जिसमें एक बच्चे की मौत एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से हुई है। उन्होंने कहा कि अन्य बच्चों की मौत हाइपोग्लाइसीमिया यानी अचानक शुगर की कमी हो जाने से हुई है।