scriptMotivational: महज 32 साल की उम्र में दुनिया छोड़ गए गणितज्ञ रामानुजन ने कई कीर्तिमान बनाए | Mathematician Ramanujan, who left the world at the age of 32 | Patrika News
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Motivational: महज 32 साल की उम्र में दुनिया छोड़ गए गणितज्ञ रामानुजन ने कई कीर्तिमान बनाए

Highlights

National Mathematics Day को रामानुजन के जन्मदिवस पर मनाया जाता है।
महज 12 वर्ष की उम्र में उन्होंने त्रिकोणमिति पर महारत हासिल कर ली थी।

 

Dec 21, 2020 / 10:53 pm

Mohit Saxena

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श्रीनिवास रामानुजन

नई दिल्ली। भारत में 22 दिसंबर का दिन National Mathematics Day यानी राष्ट्रीय गणित दिवस के तौर पर मनाया जाता है। यह दिवस हमारे महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के जन्मदिवस पर मनाया जाता है। विश्वविख्यात गणितज्ञ के कई कारनामे ऐसे हैं जो आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं। महज 12 वर्ष की उम्र में उन्होंने त्रिकोणमिति पर महारत हासिल कर ली थी। इस उम्र में जहां पर आम बच्चा गणित के बेसिक सीख रहा होता है, वे इस उम्र में किसी खोज में जुटे हुए थे।
22 दिसंबर 1887 के दिन जन्म हुआ

22 दिसंबर 1887 के दिन भारतीय महान गणितज्ञ श्रीनिवास अयंगर रामानुजन का जन्म हुआ था। भारत सरकार ने उनके जीवन की उपलब्धियों को सम्मानित करने के लिए इस दिन को राष्ट्रीय गणित दिवस घोषित किया था। इसकी घोषणा तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 26 फरवरी, 2012 को मद्रास विश्वविद्यालय में श्रीनिवास रामानुजन के जन्म की 125 वीं वर्षगांठ के अवसर पर की थी।
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महान गणितज्ञ श्रीनिवास अयंगर रामानुजन का जन्म कोयंबटूर के ईरोड गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। रामानुजन के पिता का नाम श्रीनिवास अयंगर था।
रामानुजन को दुनिया के महान गणितज्ञ और विचारकों में एक हैं। उन्होंने अपने जीवनकाल के समय गणित के विश्लेषण एवं संख्या सिद्धांत के क्षेत्र में बड़ा योगदान हासिल किया था। बचपन से ही वे गणित से काफी लगाव रखते थे। उनका बहुत सा समय गणित पढ़ने और उसका अभ्यास करने में जाता था। इस कारण अक्सर वे अन्य विषयों में कम अंक पाते थे।
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महज 12 वर्ष की कम उम्र में उन्होंने बिना किसी की सहायता लिए प्रमेय यानी थ्योरम्स को भी विकसित किया था। रामानुजन की आरंभिक शिक्षा कुंभकोणम के प्राथमिक स्कूल में हुई।
17 पन्नों का एक पेपर पब्लिश हुआ

1898 में उन्होंने टाउन हाई स्कूल में दाखिला लिया था। यहीं पर उनको गणित विषय की पुस्तक को पढ़ने का मौका मिला। इस पुस्तक से वे बहुत प्रभावित थे। वे उनका पसंदीदा विषय बन गया। उन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी में भी अध्ययन किया। 1911 में इंडियन मैथमेटिकल सोसाइटी के जर्नल में उनका 17 पन्नों का एक पेपर पब्लिश हुआ जो बर्नूली नंबरों पर आधारित था।
अर्थिक रूप से कमजोर रामनुजन को 1912 में मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में बतौर क्लर्क नौकरी करनी पड़ी। यहां उनके गणित कौशल के कारण एक अंग्रेज सहकर्मी ने रामानुजन को ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जीएच हार्डी से मिलने भेज दिया। प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत के कुछ माह पहले ही रामानुजन का ट्रिनिटी कॉलेज में दाखिला हो गया। हार्डी ने बाद में रामानुजन को कैंब्रिज में स्कॉलरशिप दिलाने में मदद भी की थी।
1917 में लंदन मैथमेटिकल सोसाइटी के लिए चुना गया

1916 में गणित में बीएससी की डिग्री हासिल करने के बाद उन्हें 1917 में लंदन मैथमेटिकल सोसाइटी के लिए चुना गया। इसके बाद वे विश्वभर में प्रसिद्ध हो गए। बिना किसी की मदद के रामानुजन ने हजारों परिणाम, इक्वेशन के रूप में संकलित किए। ये पूरी तरह से मौलिक थे जैसे कि रामानुजन प्राइम, रामानुजन थीटा फंक्शन, विभाजन सूत्र और मॉक थीटा फंक्शन।
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ट्रिनिटी कॉलेज के फेलो चुने जाने वाले पहले भारतीय भी बने

1729 नंबर हार्डी-रामानुजन (Hardy-Ramanujan) नंबर के रूप में व्यख्यात हुआ। रॉयल सोसायटी में सबसे कम आयु का सदस्य होना रामानुजन के नाम है। ऐसा आज तक कभी नहीं हुआ है। इसी वर्ष अक्तूबर में वे ट्रिनिटी कॉलेज के फेलो चुने जाने वाले पहले भारतीय भी बने थे। रामानुजन 1919 में भारत लौट आए। 1920 को कुंभकोणम में उन्होंने 32 वर्ष की आयु में अंतिम सांसे लीं। 1991 में श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी ‘द मैन हू न्यू इंफिनिटी’ प्रकाशित हुई। 2015 में रामानुजन पर आधारित फिल्म The Man Who Knew Infinity रिलीज हुई थी। रामानुजन के ऐसे कई फॉर्मूले हैं, जिन पर आज भी काम हो रहा है। ये अभी भी रहस्य हैं।
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