कहते हैं कि लंबे समय से चीन भी इस गांव पर डोरे डाल रहा है। दरअसल, ये गांव ही इतना अद्भुत। यहीं नहीं इस गांव को श्रापमुक्त जगह का दर्जा प्राप्त है। इसलिए ऐसी मान्यता है कि व्यक्ति के यहां एक बार आने पर वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
यहां के लोगों के मुताबिक माणिक शाह नाम एक व्यापारी था जो शिव का बहुत बड़ा भक्त था। एक बार व्यापारिक यात्रा के दौरान लुटेरों ने उसका सिर काटकर कत्ल कर दिया। लेकिन इसके बाद भी उसकी गर्दन शिव का जाप कर रही थी। उसकी श्रद्धा से प्रसन्न होकर शिव ने उसके गर्दन पर वराह का सिर लगा दिया। इसके बाद माना गांव में मणिभद्र की पूजा की जाने लगी।
शिव ने माणिक शाह को वरदान दिया कि माणा आने पर व्यक्ति की दरिद्रता दूर हो जाएगी। माणा से 24 किमी दूर भारत-चीन सीमा है। 1962 के भारत-चीन युद्ध तक माणा के भोटिया जनजाति निवासी जो मंगोल जाति के वंशज हैं, वे चीनी नागरिक समझे जाते थे। उन्हें भारतीय नागरिकता तक हासिल नहीं थी। सीमा पूरी तरह खुली और असुरक्षित थी। आर्मी तो दूर यहां कोई सुरक्षा बल भी तैनात न थे।
लेकिन यहां नागरिकों ने चीन के भारी दबाव और लालच के बावजूद इस समूचे क्षेत्र को चीन के प्रभुत्व में आने से बचाकर भारत में शामिल कराने में अहम भूमिका निभाई। यह 10 पवित्र बदरीनाथ धाम से 3 किमी आगे भारत और तिब्बत की सीमा स्थित इस यह गांव का नाम भगवान शिव के भक्त मणिभद्र देव के नाम पर पड़ा था। इस गांव के साथ एक अनोखी कहानी भी जुड़ी है। जिसके बारे में जानकर आप हैरान रह जाएंगे।
यहां के नागरिक बताते हैं कि 1962 में भारत दूर और चीन नजदीक था और चीनी नागरिक खुलेआम यहां तक आते थे। यहां तक कि माणा के निवासी भी चीनी भाषा बोलते और समझते थे। माणा में स्थित अंतिम भारतीय दुकान चलाने वाले भूपेंद्र सिंह टकोला बताते हैं कि इस सबके बावजूद भारत-चीन युद्ध में यहां के निवासियों ने चीन के दबाव और प्रलोभन को दरकिनार कर भारतीय फौज का साथ दिया और क्षेत्र को भारत में बनाए रखने में भूमिका निभाई।
हिमालय क्षेत्र में मिलने वाली अचूक जड़ी-बूटियों के लिए भी माणा गांव बहुत प्रसिद्ध है। हालांकि यहाँ के बहुत कम लोगों को इसकी जानकारी है। यहां मिलने वाली कुछ उपयोगी जड़ी-बूटियों में ‘बालछड़ी’ है जो बालों में रूसी खतम करने और उन्हें स्वस्थ रखने के काम आती है। यही नहीं महाभारत युद्ध के समाप्त होने पर पांडव द्रोपदी सहित इसी गांव से होकर ही स्वर्ग को जाने वाली स्वर्गारोहिणी सीढ़ी तक गए थे।