दोबारा नियुक्ति को कोर्ट में चुनौती
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली उच्चाधिकार प्राप्त चयन समिति (सलेक्ट कमेटी) ने आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक के पद से हटा दिया था। इसके बाद राव को दोबारा सीबीआई की कमान दी गई थी। इसी को लेकर कॉमन कॉज की ओर से जाने-माने वकील प्रशांत भूषण के ने कोर्ट में याचिका दायर की है।
याचिका में क्या दलील दी गई?
एनजीओ ने तर्क दिया कि सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति के लिए उच्चस्तरीय चयन समिति को केंद्र सरकार द्वारा पूर्ण रूप से किनारे कर 10 जनवरी को राव की अंतरिम डायरेक्टर के रूप में नियुक्ति कर दी गई, जो कि मनमाना और उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। याचिका में कहा गया है कि नागेश्वर राव की अंतरिम सीबीआई डायरेक्टर के रूप में नियुक्ति उच्चस्तरीय चयन समिति की सिफारिशों के आधार पर नहीं हुई है। 10 जनवरी, 2019 की तारीख वाले आदेश में कहा गया है कि कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने पहले की व्यवस्थाओं के अनुसार नागेश्वर राव की नियुक्ति को मंजूरी दी है। संगठन ने कहा है कि हालांकि राव को अंतरिम निदेशक बनाने वाले 23 अक्टूबर, 2018 के पहले के आदेश को इस अदालत द्वारा आठ जनवरी, 2019 को रद्द कर दिया गया था, क्योंकि इसने डीपीएसई अधिनियम में परिभाषित सीबीआई निदेशक की नियुक्ति की प्रक्रिया का उल्लंघन किया था।
विवाद के बीच राव ने दो बार संभाली जिम्मेदारी
10 जनवरी को सीबीआई डायरेक्टर पद से आलोक वर्मा को हटाए जाने के एक दिन बाद 11 जनवरी को एम. नागेश्वर राव को फिर से सीबीआई डायरेक्टर का कार्यभार दे दिया गया। वर्ष 1986 बैच के ओडिशा कैडर के भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी राव ने कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के अनुरूप कार्यभार संभाल लिया। इससे पहले सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना और वर्मा द्वारा एक-दूसरे पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने के बाद केंद्र सरकार ने 23 अक्टूबर को वर्मा और अस्थाना को छुट्टी पर भेज दिया था और राव को अंतरिम निदेशक का प्रभार सौंपा था। वर्मा को सीबीआई निदेशक के रूप में फिर से नियुक्त करने के 48 घंटे के भीतर ही पद से हटाकर राव को पदभार सौंप दिया गया। दोबारा सीबीआई चीफ बनने के कुछ ही घंटे घंटे बाद नागेश्वर राव ने शुक्रवार को आलोक वर्मा द्वारा जारी किए गए सभी तबादला आदेशों को रद्द कर दिया