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तो इस वजह से आस्ट्रेलिया में 65 हजार रुपये में बिक रही भारत की देसी खाट

आस्ट्रेलिया में भारत की देसी खाट 65 हजार रुपये में बिक रही है।

Oct 08, 2017 / 09:34 pm

ashutosh tiwari

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अनुराग अनंत/नई दिल्ली। सितम्बर 2016 में जब राहुल गांधी जब उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव लड़ने आए तो उन्होंने चुनाव अभियान की शुरुवात “खाट पंचायत” से की। लोग उनकी सभाओं से खटिया उठा के ले गए। इस पर विरोधियों ने तंज किया कि उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी की “खाट खड़ी हो गयी”। इस तंज के साथ ही खटिया चर्चा में थी। वहीं खटिया जो भारत की व्यापक पहचान का हिस्सा थी पर समय बदलने के साथ ही वो बेहद सीमित दायरे में सिमटती चली गयी और बाजारवाद के दबाव के चलते शहरों से लगभग गायब ही हो गयी है।
हम भले ही आराम करने और सोने के लिए खटिया का प्रयोग न करतें हों पर भाषा में हम आज भी “खाट खड़ी होना” मुहावरे का प्रयोग करते हैं। फिल्मी गीतों में भी खटिया आती है और फिल्म राजा बाबू में गोविंदा ने “सरकाय लेव खटिया जड़ा लगे” गाया था. अभी कुछ दिन कुछ दिन पहले “सरकाय लेव खटिया जड़ा लगे” नाम से ही एक भोजपुरी फ़िल्म भी बन रही है। ये सभी सन्दर्भ अपने आप में ये बताते हैं कि भारतीय जीवन पद्धति और हमारे परिवेश में खाट का क्या महत्व था, क्या व्यापकता थी।
इतिहास के पन्नों में भी खटिया के कसीदों की महक मिलती है। कहा जाता है कि मोरक्को का यात्री विद्द्वान इब्नेबतूता जब मोहम्मद बिन तुगलक के दरबार में काम करने के लिए भारत आया तो खटिया को देख कर एकदम हैरान हो गया। उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि आराम करने और सोने के लिए इतनी सरल, हल्की और उपयोगी चीज कोई हो सकती है। उसने भारी-भारी पलंग देखे थे जिसमे खटिया जितना आराम भी नहीं था और ना वो खटिया जितने हल्के होते थे।
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वो खटिया की बनावट और उसकी उपयोगिता पर मुग्ध था। 1350 ई. में उसने अपने यात्रा संस्मरण में खाट का जिक्र करते हुए लिखा “भारत में सोने के लिए प्रयोग की जाने वाली पलंग नुमा वस्तु बेहद हल्की है। इसे अकेला व्यक्ति भी उठा के एक जगह से दूसरे जगह तक जा सकता है” और क्योंकि इब्नेबतूता एक यात्री था इसलिए उसने यात्रा के लिहाज़ से खटिया को बहुत मुफीद पाया।
वो आगे लिखता है “प्रत्येक यात्री को अपनी खटिया साथ रखनी चाहिए जिसे उसके साथ चलने वाले दास लाद कार चलें”। इब्नेबतूता बड़ी विस्तार से खटिया के आकार, उसकी संरचना और उसकी उपयोगिता से वर्णन करता है। वो अपने उसी यात्रा संस्मरण में कहता है “आप जब खटिया में सोते हैं तो आपको गद्दे की जरुरत नहीं होती आपको पर्याप्त लचक बिन गद्दे के ही मिलती है”। खटिया समाज, संस्कृति और राजनीति के विमर्शों में अपनी गहरी पैठ रखने के बावजूद बाजारवाद के दबाव में अर्ततन्त्र के गणित में हांसिये पर जाता रहा पर वर्तमान में ये सूरत बदलती हुई दिखती है और ये सूरत कोई भारतीय नहीं बदल रहा है।
इस बार भी खटिया की ब्रांडिंग और मार्केटिंग एक विदेशी ही कर रहा है। नाम डेनियल ब्लूर है। आस्ट्रेलिया के रहने वाले हैं और खटिया को वैश्विक पैमाने पर एक ब्रांड के रूप में पेश कर रहें हैं। ऑनलाइन मार्केट में खटिया तहलका मचाये हुए है। फेसबुक और ट्वीटर के दीवारों पर खटिया के कसीदें एक बार फिर नमूदार हैं। पूरा विश्व एक बार फिर इब्नेबतूता की तरह अचंभित है। डेनियल ब्लूर ने एक खाट की कीमत 990 डॉलर रखी है। जो भारतीय मुद्रा में लगभग 65 हजार रुपये के बराबर है।
हुआ कुछ यूं था कि साल 2010 में डेनियल ब्लूर भी इब्नेबतूता की तरह ही भारत यात्रा के लिए आये थे। उन्हें एक संगीत गुरु की तलाश थी। गुरु की तलाश कितनी पूरी हुई ठीक-ठीक नहीं बता सकते पर डेनियल को इस तलाश में खटिया मिली और वो भी इब्बनबतूता के तरह इसके कसीदे पढ़ने लगे। उन्हें हमारी खाट कितनी पसंद आयी साल 2017 इस बात की गवाही दे रहा है। उन्होंने लगभग छ: महीने पहले अपने एक दोस्त के लिए एक खाट तैयार की और फिर उन्हें लगा कि वो इसे बेच सकते हैं और उन्होंने इसकी ब्रांडिंग करनी शुरू कर दी और आज हमारी खटिया, चारपाई या खाट आप जो भी कहना चाहें, वर्चुअल वर्ल्ड में चर्चा का विषय है।
इस खबर से फेसबुक-ट्विटर पटी पड़ी है और दुनिया भर में खटिया के लिए एक नए बाजार और नई संभावनाओं के द्वार खुलते दिखते हैं। हमारे यहां वो चीज हांसिये के अंतिम छोर पर पहुंच गयी थी। हम उसे व्यंग और कटाक्ष करने के लिए मुहावरों में प्रयोग करने से आगे उसकी उपयोगिता पर कुछ सोच नहीं पा रहे थे। उसी चारपाई को एक अन्य देश का व्यक्ति एक ब्रांड में बदल देता है और लाखों का मुनाफा कमा रहा है। हमें सोचने की जरुरत है कि कैसे कोई वस्तु जिसकी हमारे जीवन में बने रहने की संभावनाएं भी लगभग समाप्त हो रहीं थी वो विदेशों में नई संभावनाएं रह रहा है। जीवन में नया आयाम, नया रंग जोड़ रही है।

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