जस्टिस ए. मोहम्मद मुस्ताक और कौसर एडप्पागथ की खंडपीठ ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप में साथी को देखभाल और घरेलू हिंसा कानूनों के दायरे में तो लाया जा सकता है, लेकिन ऐसे रिश्तों को वैवाहिक नहीं माना जा सकता है।
कोर्ट लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही अपीलकर्ता महिला के मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें फैमिली कोर्ट ने उसे दिवंगत सरकारी कर्मचारी की पत्नी होने के दावे के तहत पेंशन और अन्य मृत्यु लाभों से वंचित कर दिया था। हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट का यह फैसला बरकरार रखा है।
उल्लेखनीय है कि इन दिनों लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर कोर्ट में कई तरह के जटिल मामले आ रहे हैं। इन मामलों की सुनवाई के दौरान ही कोर्ट इन पर इस तरह के फैसले दे रहे हैं जो आगे चलकर संबंधित मामलों में एक गाइडलाइन की तरह उपयोग किए जा सकेंगे। अभी हाल ही में इसी तरह का एक अन्य मामला भी सामने आया था जिसमें विवाहित पत्नी की मृत्यु के बाद लिव-इन पार्टनर ने मृतक साथी की पेंशन व अन्य लाभों पर अपना हक जताते हुए कोर्ट से उन सभी लाभों को दिलाने की प्रार्थना की थी। मृतका का पति सरकारी विभाग से रिटायर्ड था तथा उसकी पत्नी की कैंसर से मृत्यु हो चुकी थी। परन्तु पत्नी की मृत्यु से पूर्व उसकी सहमति से उसने पत्नी की बहन के साथ ही लिव-इन रिलेशनशिप में रहना शुरू कर दिया था।