दरअसल उच्च न्यायाल में बेंगलूरु की निवासी भुवनेश्वरी वी. पुराणिक ने एक याचिका दायर की थी। कोर्ट ने इसी याचिका पर सुनवाई के बाद अपना फैसला सुनाया। इस फैसले के मुताबिक अब शादीशुदा महिलाएं भी पिता की नौकरी पर अपना दावा कर सकती हैं।
कैलाश विजयवर्गीय का दावा, कमलनाथ सरकार गिराने में था पीएम मोदी का बड़ा हाथ कर्नाटक की हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए शादीशुदा महिलाओं को भी पिता की नौकरी पर हक जताने का अधिकार दिया है। सहानुभूति के आधार पर फैसला देते हुए कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक जीवन में जाने के बाद भी बेटियां परिवार के हिस्से के तौर पर ही रहती हैं।
ये है पूरा मामला
कोर्ट में याचिका दाखिल करने वाली बेंगलूरु की निवासी भुवनेश्वरी वी. पुराणिक के पिता अशोक अदिवेप्पा मादिवालर बेलगावी जिले के कृषि उत्पाद मार्केटिंग समिति के ऑफिस में सचिव के पद पर कार्यरत थे।
सर्विस में रहते हुए 2016 में उनकी मृत्यु हो गई। प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर रहे बेटे ने सरकारी नौकरी में दिलचस्पी नहीं दिखाई। ऐसे में भुवनेश्वरी ने पिता की जगह नौकरी के लिए आवेदन दिया।
कोर्ट में याचिका दाखिल करने वाली बेंगलूरु की निवासी भुवनेश्वरी वी. पुराणिक के पिता अशोक अदिवेप्पा मादिवालर बेलगावी जिले के कृषि उत्पाद मार्केटिंग समिति के ऑफिस में सचिव के पद पर कार्यरत थे।
सर्विस में रहते हुए 2016 में उनकी मृत्यु हो गई। प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर रहे बेटे ने सरकारी नौकरी में दिलचस्पी नहीं दिखाई। ऐसे में भुवनेश्वरी ने पिता की जगह नौकरी के लिए आवेदन दिया।
लेकिन विभाग के जॉइंट डायरेक्टर ने ये कहकर उनका आवेदन खारिज कर दिया कि वे शादीशुदा हैं और उनका कोई अधिकारी नहीं बनता। विभाग के रिजेक्शन के बाद भुवनेश्वरी ने इसे भेदभावपूर्ण करार दिया। यही नहीं इस विभाग के रिजेक्शन के खिलाफ भुवनेश्वरी कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया।
कोर्ट ने बताया असंवैधानिक
कोर्ट ने कर्नाटक सिविल सेवा के तहत शादीशुदा बेटियों को परिवार के दायरे से बाहर किए जाने को अवैध, असंवैधानिक, भेदभावपूर्ण करार दिया। साथ ही ऐसे नियम को भी खारिज किया, जिसमें केवल अविवाहित बेटियों को ही परिवार का हिस्सा समझा जाता है।
कोर्ट ने कर्नाटक सिविल सेवा के तहत शादीशुदा बेटियों को परिवार के दायरे से बाहर किए जाने को अवैध, असंवैधानिक, भेदभावपूर्ण करार दिया। साथ ही ऐसे नियम को भी खारिज किया, जिसमें केवल अविवाहित बेटियों को ही परिवार का हिस्सा समझा जाता है।
कोर्ट ने दिया ये तर्क
भुवनेश्वरी की याचिका पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस एम. नागाप्रसन्ना की बेंच ने कहा कि महिलाओं की आबादी ‘आधी दुनिया है और उन्हें आधा अवसर भी नहीं मिलना चाहिए?’ जज ने फैसले में कहा कि पिता की नौकरी पर दावे के लिए जब बेटे के वैवाहिक स्टेटस का कोई फर्क नहीं पड़ता है, तो बेटी के वैवाहिक स्टेटस का भी फर्क नहीं पड़ना चाहिए।
भुवनेश्वरी की याचिका पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस एम. नागाप्रसन्ना की बेंच ने कहा कि महिलाओं की आबादी ‘आधी दुनिया है और उन्हें आधा अवसर भी नहीं मिलना चाहिए?’ जज ने फैसले में कहा कि पिता की नौकरी पर दावे के लिए जब बेटे के वैवाहिक स्टेटस का कोई फर्क नहीं पड़ता है, तो बेटी के वैवाहिक स्टेटस का भी फर्क नहीं पड़ना चाहिए।
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कोर्ट ने संबंधित विभाग को निर्देश भी जारी किया वे भुवनेश्वरी को जॉब दें।
कोर्ट ने संबंधित विभाग को निर्देश भी जारी किया वे भुवनेश्वरी को जॉब दें।