कोर्ट में याचिका दाखिल करने वाली बेंगलूरु की निवासी भुवनेश्वरी वी. पुराणिक के पिता अशोक अदिवेप्पा मादिवालर बेलगावी जिले के कृषि उत्पाद मार्केटिंग समिति के ऑफिस में सचिव के पद पर कार्यरत थे।
सर्विस में रहते हुए 2016 में उनकी मृत्यु हो गई। प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर रहे बेटे ने सरकारी नौकरी में दिलचस्पी नहीं दिखाई। ऐसे में भुवनेश्वरी ने पिता की जगह नौकरी के लिए आवेदन दिया।
कोर्ट ने कर्नाटक सिविल सेवा के तहत शादीशुदा बेटियों को परिवार के दायरे से बाहर किए जाने को अवैध, असंवैधानिक, भेदभावपूर्ण करार दिया। साथ ही ऐसे नियम को भी खारिज किया, जिसमें केवल अविवाहित बेटियों को ही परिवार का हिस्सा समझा जाता है।
भुवनेश्वरी की याचिका पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस एम. नागाप्रसन्ना की बेंच ने कहा कि महिलाओं की आबादी ‘आधी दुनिया है और उन्हें आधा अवसर भी नहीं मिलना चाहिए?’ जज ने फैसले में कहा कि पिता की नौकरी पर दावे के लिए जब बेटे के वैवाहिक स्टेटस का कोई फर्क नहीं पड़ता है, तो बेटी के वैवाहिक स्टेटस का भी फर्क नहीं पड़ना चाहिए।
कोर्ट ने संबंधित विभाग को निर्देश भी जारी किया वे भुवनेश्वरी को जॉब दें।