नई दिल्ली। उत्तराखंड अपनी खूबसूरती के लिए काफी मशहूर है। पहाड़ी इलाकों में कई तरह के फल-फूल पाए जाते हैं, जिनकी अपनी अलग विशिष्टता होती है। आज हम उत्तराखंड में पाए जाने वाले एक ऐसे ही फल का जिक्र करेंगे जो वाकई में काफी अनोखा है। इस फल को काफल के नाम से जाना जाता है।
हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाले इस पहाड़ी फल की बनावट शहतूत की तरह होती है। गर्मियों में पाए जाने वाले काफल जब कच्चा रहता है तो हरे रंग का होता है लेकिन पकने पर ये लाल और काले रंग का हो जाता है। इसका स्वाद कुछ खट्टा और कुछ मीठा होता है। पहाड़ी लोगों में काफल रोजगार का एक जरिया भी है। यहां लोग दिनभर पहाड़ों में घूमकर काफल इकट्ठा करते हैं और आसपास के शहरी इलाकों में जाकर बेचते हैं।
काफल स्वास्थ्य के लिए भी काफी लाभप्रद माना जाता है। काफल के पीछे एक रोचक कहानी भी है। कहा जाता है कि एक बार एक बूढ़ी औरत दिनभर पहाड़ों में घूमकर काफल इकट्ठा कर घर लाती है और फल के उस टोकरी को अपने बेटी के जिम्मे में छोड़कर किसी दूसरे काम में निकल जाती है।
देर दोपहर में वापस आकर वो देखती है कि टोकरी में काफल काफी कम हो गया है और वो ये सोचती है कि उसकी बेटी ने ही काफल खा लिया है। गुस्से में तिलमिलाई महिला ने सोती हुई बेटी पर जोर प्रहार किया जिससे उसकी मौत हो गई। शाम को वो औरत देखती है कि काफल की टोकरी में फिर से काफल भर गए हैं।
इस पर महिला को पता चलता है कि काफल धूप में मुरझा जाते हैं और शाम होते ही फिर से खिल जाते हैं। इस बात पर उस बूढ़ी औरत को अपनी बेटी की मौत का दुखद एहसास होता है और इस सदमें को न सह पाने के कारण उसकी मौत हो जाती है।
कुमाऊं के लोक गीतो में काफल का जिक्र मिलता है। यहां लोग काफल को देवों का फल मानते हैं। स्वास्थ्यवर्धक और स्वादिष्ट होने के बावजूद काफल को बड़े स्तर पर पहचान नहीं मिल सकी है और इसके पीछे का कारण ये है कि काफल एक मौसमी फल है और पेड़ से तोड़े जाने के 23-24 घंटे के बाद ही ये खराब होने लगता है। स्टोरेज की उचित व्यवस्था होने पर काफल का स्वाद अन्य राज्य के लोग भी ले सकेंगे।