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चंद्रयान 2: ISRO ने इस जुगाड़ से बचाए 25 करोड़, इस गांव की मिट्टी से बनाई थी चांद जैसी सतह

तमिलनाडु के दो गांव सीतमपोंडी और कुन्नामलाई की मिशन मून में अहम भूमिका
अमरीका की मदद में खर्च होने थे करोड़ो, इसरो ने बचाए

Oct 05, 2019 / 09:13 am

Shweta Singh

नई दिल्ली। भारत के महत्वकांक्षी चंद्रयान 2 मिशन को उस वक्त बड़ा झटका लगा था, जब लैंडर विक्रम का चांद की सतह पर 2.1 किमी पहले ऑर्बिटर पर संपर्क टूट गया था। अब तक तो आपने चंद्रयान 2 के बारे में काफी खबरें पढ़ ली होंगी और आपको इस बारे में काफी कुछ पता होगा, लेकिन इस रिपोर्ट में इस मिशन में तमिलनाडु के दो गांव के बारे बताने जा रहे हैं। राज्य के दो गांवों की मदद से यह तय हो पाया कि चांद पर लैंडिंग सुरक्षित हो पाएगी या नहीं।

तमिलनाडु के दो गांव की अहम भूमिका

दरअसल, भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी (ISRO) ने तमिलनाडु के दो गांव सीतमपोंडी और कुन्नामलाई की मिट्टी की मदद से इस बारे में पता लगाया गया था। इन दोनों गांवों में पाई जाने वाली मिट्टी चांद की सतह पर मौजूद मिट्टी/पत्थर से मिलती है। ISRO ने चंद्रयान 2 को लॉन्च करने से पहले जमीन पर काफी शोध किया, और कड़ी मेहनत के बाद ये सुनिश्चित किया कि चांद पर लैंडिंग सुरक्षित हो सकती है।

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ISRO के पूर्व निदेशक ने दी जानकारी

दोनों गांवों की मिट्टी से लैब में चंद्रमा का आर्टिफिशियल सतह तैयार किया गया था। ISRO के पूर्व निदेशक एम अन्नादुरई ने मीडिया को बताया कि ‘पृथ्वी की सतह और चंद्रमा की सतह पूरी तरह से अलग है। ऐसे में हमें एक आर्टिफिशियल चंद्रमा की सतह बनाने और हमारे रोवर और लैंडर की टेस्टिंग करनी थी।’ गौरतलब है कि चंद्रयान-2 तीन हिस्सों का संयोजन है,जिसमें ऑर्बिटर, विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर शामिल है।

अमरीका से मंगानी पड़ती मिट्टी

अन्नादुराई ने आगे बताया कि ‘उड़ान से पहले जरूरी था कि लैंडर और रोवर के पहियों का परीक्षण किया जा सके।’ इसका एक विकल्प तो था कि अमरीका से चांद पर मिलने वाली मिट्टी आयात की जाए, लेकिन ऐसा करना महंगा पड़ रहा था। इसके बाद इसरो वैज्ञानिकों ने सस्ता विकल्प ढूंढा। कई भूवैज्ञानिकों से बात कर पता चला था कि तमिलनाडु में सलेम के पास “एरोथोसाइट” (anorthosite) चट्टानें उपलब्ध हैं, जो चंद्रमा की मिट्टी से मेल खाती हैं। इसके बाद वैज्ञानिकों ने सीतामपोंडी और कुन्नमलाई गांवों से “एनोरोथोसाइट” चट्टानों मंगाने का फैसला किया। इन्हें बाद में बेंगलूरु ले जाकर जरूरत के अनुसार आकार दिया गया और एक आर्टिफिशियल चांद की परत तैयार की गई।

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25 करोड़ रुपये का बजट

अन्नादुरई ने बताया कि, ‘शुरु में 25 करोड़ रुपये का बजट बनाया गया था। हालांकि, बाद में कोई खर्चा नहीं हुआ क्योंकि सर्विस प्रोवाइडर्स ने पैसा नहीं लिया। गौरतलब है कि कर्नाटक में चित्रदुर्ग जिले के चल्लकेरे में आर्टिफिशियल चांद की सतह तैयार की गई थी और यहीं लैंडर और रोवर का परीक्षण किया गया था।

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