20 करोड़ खर्च होने के बाद भी नहीं मरा था वीरप्पन के. विजय कुमार तमिलनाडु कैडर के 1975 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए सरकार ने करीब 20 करोड़ रूपए खर्च कर दिए थे। तीन राज्यों की पुलिस वीरप्पन की तलाश में 24 घंटे जंगलों में खाक छानती रही लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। इसी बीच आईपीएस के. विजय की तैनाती एसटीएफ में हो गई। उन्हें सरकार ने विशेष रूप से वीरप्पन के खात्मे का जिम्मा सौंपा।
विजय कुमार ने बीच जंगल में वीरप्पन को उतारा मौत के घाट बताया जाता है कि विजय कुमार ने बन्नारी अम्मान के मंदिर में प्रण किया था कि जबतक वीरप्पन को मार नहीं देंगे अपने सिर के बाल नहीं कटवाएंगे। इसके बाद विजय कई साल तक वीरप्पन की तलाश में भटकते रहे। वो हर छोटे से छोटे सबूतों को वीरप्पन की ताबूत का कील बनाने में जुटे थे। आखिरकार विजय कुमार की मेहनत रंग लाई। 18 अक्टूबर,2004 को उन्होंने अपने साथियों के साथ तमिलनाडु के धरमपुरी जंगल में एक सुनियोजित एनकाउंटर के तहत वीरप्पन को मार गिराया।
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पूरी दुनिया ने माना विजय का लोहा वीरप्पन को मारने के साथ ही विजय कुमार पूरी दुनिया की मीडिया में छा गए। वीरप्पन के एनकाउंटर पर उन्होंने एक किताब भी लिखी। ‘विरप्पन चेंजिंग द ब्रिग्रांड’ में उन्होंने वीरप्पन के बचपन से डाकू बनने तक की पूरी कहानी का जिक्र किया। नक्सलियों के बाद अब आतंकियों का नंबर 2010 में जब नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में सीआरपीएफ के 75 जवानों की हत्या कर दी थी। तब नक्सलियों पर लगाम कसने और शहादत का बदला लेने के लिए आईपीएस विजय कुमार को सीआरपीएफ का डायरेक्टर जनरल भी बनाया गया था। विजय कुमार की बहादुरी और सूझबूझ से इतना तो साफ हो गया है कि वीरप्पन और नक्सलियों के बाद अब उनके निशाने पर आतंकवादियों का खात्मा है।