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स्वदेशी GPS नाविक के लिए अभी करना होगा लंबा इंतजार, जानें क्या है खासियत?

1420 करोड़ रुपए की लागत से तैयार हुए नाविक को आम लोगों के उपयोग में लाए जाने वाले उपकरणों में आने में वर्षों का समय लग सकता है।

Aug 08, 2017 / 08:59 am

ashutosh tiwari

नई दिल्ली. भारतीय वैज्ञानिकों ने जहां एक मुश्किल चुनौती को पूरा करते हुए जीपीएस की अमरीकी व्यवस्था को टक्कर देने वाला भारतीय सिस्टम तैयार कर लिया है, लेकिन हाल-फिलहाल इसका आम लोगों तक पहुंचना बहुत मुश्किल दिख रहा है। सात सेटेलाइट और 1420 करोड़ रुपए की लागत से तैयार हुए नाविक नाम के इस देसी सिस्टम को आम लोगों के उपयोग में लाए जाने वाले उपकरणों में आने में वर्षों का समय लग सकता है। क्योंकि इसके लिए मोबाइल फोन से ले कर नेविगेशन सिस्टम तक के हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर में बदलाव करना होगा। जिसमें काफी समय लगेगा।

गूगल मैप जैसी सेवा होगी देसी
बेहद तेजी से लोकप्रिय हो रही गूगल मैप जैसी सेवाएं जिस सिस्टम पर चलती हैं उसे ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम यानी जीपीएस कहते हैं। यह अमरीकी सरकार की ओर से संचालित की जाती है। देसी सिस्टम तैयार हो जाने के बाद निर्भरता दूर हो जाएगी।

क्यों लगेगा वक्त
जिन उपकरणों में इस सेवा का उपयोग होना है पहले उन्हें इस सेवा के लिए सक्षम बनाना होगा। अभी भारत में उपयोग हो रहे उपकरण सिर्फ जीपीएस सक्षम हैं। अगर इन पर नैविक सिस्टम चलाना है तो इसके लिए इनमें हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर दोनों में ही बदलाव करना होगा। असली समस्या यह है कि इनका उपयोग करने वाले लोग और बनाने वाली कंपनियां पहले इंतजार करेंगे नई व्यवस्था पर आधारित सेवाएं अधिक से अधिक उपलब्ध हों। लेकिन ऐसा लग नहीं रहा कि गूगल जैसी कंपनियां अमेरिकी जीपीएस को टक्कर देने वाली भारतीय तकनीक को आसानी से अपनाएगी। ना ही इसे चुुनौती देने वाली कोई भारतीय कंपनी दिखाई दे रही है। वहीं केंद्रीय अंतरिक्ष विभाग के राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि अंतरिक्ष और जमीन पर होने वाले जरूरी काम कर लिए गए हैं। साथ ही विभिन्न एप्लीकेशन में इसके उपयोग को ले कर डेमो भी किए जा रहे हैं। लेकिन बाजार में इसके पूरी तरह ऑपरेशनल होने में अभी कुछ वर्षों का समय और लगेगा।

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