2012 में हुई थी इसकी शुरुआत
वैज्ञानिक दंपत्ति ने दुनिया के अलग-अलग देशों में बैठे अनजान लोगों के साथ मिलकर इंटरनेट से इस संबंध में सबूत जुटाए हैं। ये लोग चीनी दस्तावेज का अनुवाद कर अपने स्तर पर इसकी जांच कर रहे हैं। चाइनीज एकेडमिक पेपर और गुप्त दस्तावेजों के अनुसार इसकी शुरुआत साल 2012 से हुई है। बताया जा रहा है कि उस सयम छह खदान श्रमिकों को यन्नान के मोजियांग में चमकादड़ों के आतंक वाले माइनशाफ्ट को साफ करने भेजा गया था। श्रमिकों की वहां मौत हो गई। इसके बाद 2013 में वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के डायरेक्टर डॉ. शी झेंगली और उनकी टीम माइनशाफ्ट से सैंपल लेकर आ गई।
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सीकर नामक ट्विटर यूजर ने साधा संपर्क
वैज्ञानिक डॉ. राहुल बाहुलिकर ने कहा कि एक ट्विटर यूजर सीकर से संपर्क किया। यह ड्रैस्टिक नामक समूह का हिस्सा है। ड्रैस्टिक वहीं जिसने डीसेंट्रलाइज्ड रेडिकल ऑटोनॉमस सर्च टीम इंवेस्टीगेटिंग कोविड-19 नाम दिया है। यह समूह कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर सुबूत जुटा रहा है। डॉ. ने बताया कि सीकर छिपे शोध सामग्री को खोजने में माहिर है। उन्होंने चीनी भाषा में एक थीसिस साझा कि जिसमें खनिकों में हुई गंभीर बीमारी के बारे में विस्तृत जानकारी दी है। उनके लक्षण बहुत हद तक कोविड-19 से मिलते जुलते थे। उनके सीटी स्कैन की तुलना कोविड मरीजों से भी की गई और पता चला कि वे एक जैसे ही नजर आए। उन्होंने कहा कि वायरस की संरचना ऐसी थी कि यह मनुष्यों को संक्रमित कर रहा था और यह ये संकेत है कि यह एक लैब से उत्पन्न हुआ।
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वुहान लैब से वायरस के लीक के सुबूत मिले
बता दें कि पहले भी कई शोध और रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कोरोना वायरस चीन की बुहान लैब से ही लीक हुआ है। वाशिंगटन, एएनआइ चीन की विषाणु विज्ञानी डा. ली-मेंग यान ने कहा है कि उन्होंने शुरू में ही कहा था कि कोरोना वायरस चीन की वुहान स्थित लैब से निकला है। अब कोरोना महामारी पर अमेरिकी सरकार के सलाहकार एंथनी फासी के ईमेल से उनकी बात सच साबित हुई है। यान ने कहा कि फासी को भी पता था कि वायरस वुहान लैब से ही निकला है, लेकिन उन्होंने चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी अपने फायदा के लिए चुप्प है।