नई दिल्ली। रेल मंत्रालय ( Ministry of Railways ) और राज्य सरकारों ( State governments )
के आंकड़ों की बाजीगरी में गरीब मजदूर ( Migrant laborers ) ठगा गया। कागजों में तो रेलवे पलायन करने वाले मजदूरों को किराए में 85 फीसदी रियायत दे रहा है, लेकिन असलियत में यह रियायत 35 से 40 फीसदी के बीच ही है। रेलवे के अधिकारिक सूत्रों के अनुसार सामान्य दिनों में यात्री ट्रेन के कुल खर्च पर प्रत्येक यात्री को टिकट किराए में 45 से 50 फीसदी अनुदान देकर टिकट राशि तय की जाती है। कोरोना काल में अन्य राज्यों में फंसे श्रमिकों को गृह राज्य भेजने के लिए चलाई गईं ट्रेनों को सामान्य ट्रेन की बजाय रेलवे ने चार्टर्ड ट्रेन ( Chartered train) की श्रेणी मानते हुए टिकट किराए की गणना की। तमाम राज्य सरकार तीर्थ यात्रा के लिए ऐसी चार्टर्ड ट्रेनों की सेवा लेती हैं। ऐसी ट्रेनों का टिकट किराया सामान्य ट्रेनों की तुलना में दोगुना होता है।
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रेलवे का यह भी तर्क है कि श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेन में वैसे भी कई अतिरिक्त सुविधाएं दी जा रही हैं। इसकी वजह से भी ट्रेन की परिचालन का खर्च ज्यादा हो गया। ऐसी स्थिति में रेलवे ने सामान्य दिनों में यात्री ट्रेनों के किराए में दिए जाने वाले 45 से 50 फीसदी अनुदान को बढ़ाकर 85 फीसदी तक कर दिया। जबकि शेष 15 फीसदी किराया श्रमिकों से वसूलने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों को सौंप दी। बढ़ी हुई दर के चलते श्रमिकों को दिए जा रहे टिकटों की राशि सामान्य दिनों जैसी ही दिख रही है।
राज्यों ने रेलवे के निर्देशों के हवाले से वसूली राशि
राज्य सरकारों ने भी रेलवे के निर्देशों का हवाला देकर मजदूरों से टिकट राशि वसूल ली। टिकट किराए को लेकर सियासत गमाई कुछ राज्यों की सरकारों की नींद टूटी। अब श्रमिकों से किराए वसूलकर रेलवे को देने की बजाय कुछ राज्य सरकारों स्वयं के स्तर पर किराया वहन करने की घोषणा की है।
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सियासत गर्माई तो टूटी नींद
बीते चार दिन में देश के अलग-अलग राज्यों से 58 स्पेशल ट्रेन चलाई जा चुकी हैं। इनमें अब तक 60 हजार से अधिक मजदूरों समेत अन्य लोगों की घर वापसी हो चुकी है। इनमें से अधिकांश यात्रियों ने स्वयं पैसे देकर टिकट खरीदे। टिकट राशि वसूलने को लेकर सोमवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बयान आने के बाद सियासत की शुरूआत हुई। इसके बाद रेलवे ने स्पष्ट किया कि स्पेशल ट्रेन चलाने के कुल खर्च का 85 फीसदी हिस्सा रेल मंत्रालय वहन कर रहा है। जबकि 15 फीसदी खर्च राशि टिकट से वसूली जा रही है। यह टिकट सीधे यात्री को नहीं दिए गए हैं, बल्कि राज्य सरकारों को दिए गए हैं।
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श्रमिक ट्रेनों में यह हो रहा अतिरिक्त खर्च
-कोरोना वायरस के संक्रमण रोकने के लिए ट्रेनों को सेनेटाइज करना
-कोच में कुल क्षमता के मुकाबले दो तिहाई तक यात्री बिठाना
– गंतव्य स्थल से खाली ट्रेन का लौटना
-स्लीपर के टिकट के साथ पानी की बोतल और खाना देना
-वापस लाने के बाद ट्रेन की विशेष साफ. सफाई करवा रहे हैं