अब चीन की एक भी गलती पर भारत करेगा ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल, IBG-TC नहीं देंगे कोई मौका किन्नौर के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक कोरोना वायरस महामारी (
Coronavirus Pandemic ) ने फिलहाल यहां के व्यवसाय को बाधित कर दिया है। हर साल जून से शुरू होने वाले कुछ महीनों के लिए जब बर्फ कम हो जाती है, 30 से लेकर 90 तक किन्नौर के व्यापारी ITBP सीमा चेक-पोस्ट से क्लीयरेंस प्राप्त करने के बाद काफी दूरी तक पैदल जाते हैं और सरहद के दूसरी तरफ अपने उत्पादों को बेचते हैं।
किन्नौर में जिला उद्योग केंद्र के महाप्रबंधक डॉ ठाकुर भगत ने बताया कि ये लोग ज्यादातर कंबल और कालीन जैसे ऊनी और हथकरघा सामान बेचते हैं। यहां की निर्यात सूची में लगभग 36 स्वीकृत वस्तुएं हैं जबकि आयात सूची में 20। यहां पिछले साल कुल 3 करोड़ रुपये से ज्यादा व्यापार किया गया था।
बार्डर पर सैनिक तो देश के अंदर नुकसान पहुंचाने आ रहे चीनी हैकर्स, इन कंपनियों पर मंडरा रहा है खतरा भारतीय सीमा के अंतिम गांव नामगिया के निवासी संजीव नेगी ने कहा कि पहले व्यापारी नामगिया से खच्चरों पर यात्रा करते थे, लेकिन अब सीमा तक एक वाहन चलाने लायक सड़क मौजूद है। इस रास्ते के जरिये वे चीन में चले जाते हैं और नियमानुसार तीन दिन में वापसी करनी पड़ती है।
भारत की आजादी से पहले तिब्बती व्यापारी शिपकी ला के जरिये हिमाचल में प्रवेश करते थे और विशेषकर लवी मेले के दौरान रामपुर बुशहर तक यात्रा करते थे। इसके लिए वे उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में बनी पुरानी हिंदुस्तान-तिब्बत सड़क का इस्तेमाल करते थे। 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद इस व्यापार मार्ग बंद कर दिया गया था और दोनों देशों के बीच एक समझौते के बाद 1990 के दशक में फिर से शुरू किया गया। अधिकारियों ने कहा कि इसके बाद से कोई भी चीनी व्यापारी किन्नौर में नहीं आया है और सभी व्यापारिक गतिविधियां चीन में ही होती हैं।
नेपाल के नए नक्शे के पीछे चीन का हाथ, महिला राजदूत ने किया ओली का ‘ब्रेन वाश’ वर्ष 2017 में डोकलाम में गतिरोध को लेकर दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया था। तब पिछले वर्ष के 8.6 करोड़ रुपये की तुलना में यहां का व्यापार घटकर लगभग 59 लाख रुपये रह गया था। भगत के मुताबिक इस साल अब तक कोई व्यापार नहीं हुआ है क्योंकि कोरोना वायरस के डर के चलते व्यापारी किन्नौर नहीं छोड़ना चाहते हैं।
अब तक नहीं हुआ कोई संघर्ष किन्नौर के अलावा स्पीति घाटी ( Spiti valley ) की भी एक सीमा चीन से लगी हुई है। लेकिन लद्दाख की तुलना में हिमाचल में सीमा क्षेत्र मे काफी ज्यादा बीहड़ इलाके और सघन पर्वत श्रृंखलाएं हैं। यहां सीमा की रक्षा के लिए हिमाचल की सबसे ऊंची पर्वत चोटियां जैसे कि रियो पुर्गिल (समुद्र तल से 6,816 मीटर) और गया (6,794 मी) मौजूद हैं और शिपकी ला और कौरिक जैसे कुछ रास्ते केवल बर्फ से ढंके पर्वतों के बीच निकलने का जरिया मुहैया कराते हैं।
Exclusive: चीन ने आखिरकार माना, भारतीय सेना ने मार गिराए उसके 30 सैनिक सुरक्षा अधिकारियों ने कहा कि 1962 में युद्ध के दौरान भी दोनों देशों के बीच हिमाचल-चीन सीमा पर किसी भी हिंसक सैन्य मुठभेड़ों का कोई इतिहास नहीं है। इस संबंध में एक सीमावर्ती गांव चरंग पंचायत के प्रधान पूरन सिंह ने कहा कि उस युद्ध के दौरान कौरिक पर कुछ तनाव तो था, लेकिन यह आगे नहीं बढ़ा।
राज्य सरकार द्वारा केंद्र को दी गई रिपोर्ट के मुताबिक सीमा के किनारे की बस्तियों को विशेषकर अप्रैल में स्पीति की सीमाओं के अंदर दो बार चीनी हेलिकॉप्टर देखे जाने के बाद एहतियात बरतने के लिए कहा गया था।