script2100 चीनी फाइटर के मुकाबले भारत के पास 850, फिर भी Air War में IAF है मजबूत | india-china dispute: indian air force strike capability and position in air war is better, Indian vs chinese air force | Patrika News
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2100 चीनी फाइटर के मुकाबले भारत के पास 850, फिर भी Air War में IAF है मजबूत

भारत-चीन तनाव ( india-china dispute ) के बीच वायुसेना विशेषज्ञों के मुताबिक हवाई युद्ध में भारत की भौगिलक स्थिति ( indian air force strike capability ) है बेहतर।
LAC के पास चीन ( Chinese Air Force ) की हवाई पट्टियां काफी ( Indian vs chinese air force ) कम जबकि भारत के पास ज्यादा।
भारतीय वायुसेना के पास पूरी क्षमता के साथ फाइटर ( IAF Fighter Planes ) उड़ाने और हवाई पट्टियों की संख्या है ज्यादा।

Position of India in air war is better

Position of India in air war is better

नई दिल्ली। भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव ( india-china dispute ) के बीच भारतीय वायुसेना लद्दाख ( Tension In Galwan Valley ) में लगातार अभियान जारी रखे हुए है। सुरक्षा विशेषज्ञों की मानें तो चीन की तुलना में ( Indian vs chinese air force ) लड़ाई के लिए भारत मजबूत है और हवाई युद्ध में इसकी स्थिति काफी बेहतर ( indian air force strike capability ) है। चाहे वर्ष 2013 में दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) हवाई मार्ग पर भारी-भरकम ट्रांसपोर्ट कैरियर एयरक्राफ्ट हरक्यूलिस को उतारने की बात हो या फिर हाल ही लद्दाख में सैनिकों को हवाई सहायता प्रदान करने के लिए अपाचे हेलीकॉप्टरों की तैनाती या वास्तविक नियंत्रण रेखा के करीब हवाई पट्टी पर फाइटर जेट्स ( IAF Fighter Planes ) उतारना।
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इस संबंध में एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया ( Air Chief Marshal RKS Bhadoria ) ने शनिवार को कहा कि गलवान घाटी में गतिरोध ( Tension In Galwan Valley ) से पैदा होने वाली किसी भी स्थिति से निपटने के लिए भारतीय वायुसेना अच्छी तरह से तैयार और उपयुक्त रूप से तैनात। वहीं, इस संबंध में रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक हालांकि भौगोलिक रूप से वायुसेना को हवाई शक्ति का फायदा मिल रहा है, लेकिन सरकार को कोई भी इसके इस्तेमाल पर कोई भी फैसला काफी सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद ही लेना चाहिए। इसके अलावा गलवान हाइट्स पर कब्ज़ा डीबीओ हवाई पट्टी को प्रभावित कर सकता है।
फाइनेंसियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक सेंटर फॉर एयर पावर स्टडीज़ के सेवानिवृत्त एयर वाइस मार्शल केके नाहर ने बताया कि LAC के साथ इन क्षेत्रों में सेना को सीधे सहायता देने के लिए हवाई शक्ति के इस्तेमाल पर कभी भी विचार नहीं किया गया है। लेकिन यह संभव है। मुश्किल हालात में इसकी जरूरत मदद ली जाएगी।
वहीं, सेवानिवृत्त एयर वाइस मार्शल मनमोहन बहादुर ने कहा कि चढ़ाई जमीनी या हवाई कैसी भी हो सकती है। इसमें आप अपनी सेनाओं को LAC पर गालवान और पैंगोंग सो से लेकर सिक्किम तक आगे बढ़ा सकते हैं। वायुसेना का इस्तेमाल सैन्य ताकत को बढ़ाता है और ऊंचाई पर चढ़ाई काम काम करेगा, लेकिन अगर एक पक्ष इसका इस्तेमाल करता है, तो दूसरा भी करेगा। यह मान लेना समझदारी होगी कि चीन ने वायुसेना ( Chinese Air Force ) में भी ताकत जुटाई होगी।
सूत्रों के मुताबिक कई सालों से चालू थोईस और लेह के आगे के बेस में सैनिकों और मशीनरी इकट्ठा होती आई है। नौहर ने कहा कि लड़ाई की स्थिति में आगे के मोर्चों पर जवानों और मशीनरी की तैनाती में इन ठिकानों का बहुत महत्व है। IAF के परिवहन विमान तमाम सतहों पर उतरने के अलावा एयरड्रॉप भी कर सकते हैं।
अभी हाल ही में IAF ने लद्दाख में हमले के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला हेलीकॉप्टर अपाचे और सैनिकों- मशीनरी को काफी ऊंचाई तक पहुंचाने के साथ ही भारी सामान ले जाने वाले चिनूक हेलीकॉप्टर को तैनात किया है। चिनूक को मार्च 2019 में चंडीगढ़ में भारतीय वायुसेना के एयरबेस में शामिल किया गया था।
चीनी वायु शक्ति पर जेएनयू से पीएचडी कर रहे सेंटर फॉर एयरपॉवर स्टडीज के पूर्व वरिष्ठ शोधकर्ता और ग्रुप कैप्टन रविंदर एस छतवाल ने बताया कि कि चीनी वायु सेना के पास मौजूद लड़ाकू विमानों के विशाल हवाई बेड़े के बावजूद भारतीय वायुसेना के पास भौगोलिक रूप मजबूती है।
वह कहते हैं कि चीन के पास 2,100 लड़ाकू विमान हैं। यह संख्या तो खुद उन्होंने घोषित की है हालांकि उनके पास इनकी और ज्यादा संख्या हो सकती हैं। जबकि भारतीय वायुसेना के पास 850 लड़ाकू विमान हैं। यों तो आंकड़ों में वे हमसे काफी ज्यादा हैं लेकिन हवाई युद्ध के दौरान आपको इन विमानों को सीमा के नजदीक लाना होगा और और उनके पास इलाके में सीमित संख्या में हवाई क्षेत्र हैं। इनमें से अधिकांश 10,000 फीट की औसत ऊंचाई पर तिब्बत पठार में बने हैं। चीन की पश्चिमी सीमा पर भारत के पास सात दोहरे इस्तेमाल वाले हवाई क्षेत्र हैं, जिनमें से सभी में नागरिक विमान भी आते-जाते हैं। काशगर और होटन को छोड़कर ये सभी एयरफ़ील्ड ऊंचाई पर हैं, लेकिन LAC से काफी दूरी पर हैं।
उन्होंने कहा, “सात एयरफील्ड्स के साथ आप यहां 2,100 विमान नहीं उतार सकते हैं। सबसे बेहतर स्थिति में वे 300 लड़ाकू विमानों को ला सकते हैं। यहां हमारे पास भौगोलिक लाभ है क्योंकि हमारे हवाई क्षेत्र संख्या में करीब दोगुने हैं और समुद्र तल से कम ऊंचाई पर हैं। इसके साथ ही हमारे विमान पूरी क्षमता के साथ बम लेकर उड़ान भर सकते हैं।
छतवाल ने कहा कि विमानों के अलावा एक हवाई युद्ध के लिए बुनियादी ढांचे की भी जरूरत होती है। झिंजियांग और तिब्बत में अधिकांश हवाई क्षेत्र विस्फोट से सुरक्षित नहीं है, यहां विमान खुले में खड़े होते हैं, जिससे वे हवाई हमलों के लिए असुरक्षित हैं। यह डोकलाम के बाद ही चीन ने ल्हासा के लिए सैन्य हवाई क्षेत्र में 36 भूमिगत कंक्रीट हैंगर बनाने शुरू कर दिए। पैंगोंग सो के पास एक चीनी एयरबेस पर हाल ही में मिलीं सैटेलाइट तस्वीरें भारी निर्माण की गतिविधियां दिखाती हैं।
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विशेषज्ञों के मुताबिक चीन सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों, विमानभेदी हथियारों और एयर डिफेंस तोपों की भारी मात्रा में तैनाती के साथ अपने हवाई क्षेत्रों की सुरक्षा भी कर सकता है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा हमें इसका मुकाबला करने के लिए तैयार रहना होगा। हमें इसके लिए योजना बनाने की जरूरत है। चीन, रूस की तरह बेहतर एयर डिफेंस के लिए मिसाइलों कवर पर भरोसा करेगा।

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