नई दिल्ली। लद्दाख में भारतीय इलाके में अब भी जमे बैठे चीनी सैनिकों को हटाने और उनकी ओर से किए गए निर्माण कार्यों व बड़ी मशीनों को हटाने के लिए भारत जल्दी ही सैन्य कार्यवाही शुरू कर सकता है। अगर चीन पीछे नहीं हटा तो दोनों देशों में संघर्ष काफी लंबा चल सकता है, इसलिए पहले तैयारियों को पुख्ता किया जा रहा है।
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गुरुवार को भी दोनों देशों के बीच मेजर जनरल के स्तर पर लगभग छह घंटे बातचीत चली। इस दौरान भारत की ओर से लद्धाख के उस पूरे इलाके को खाली करने को कहा गया जिस पर भारत का कब्जा रहा है। जबकि गलवान घाटी में चीन ने अपनी सेना ही नहीं सैन्य साजो-सामान का भी भारी जमावड़ा कर लिया है। सेटेलाइट तस्वीरों के मुताबिक यहां सौ से ज्यादा चीनी गाड़ियां मौजूद हैं। यहां तक कि पत्थर काटने वाली बड़ी-बड़ी मशीनें और सैन्य उपकरण भी जमाए हुए हैं।
सोमवार की रात दोनों सेनाओं के बीच हुए संघर्ष से पहले उसी दिन सुबह चीन इस बात पर पूरी तरह सहमत हो गया था कि इस जगह से वह पीछे हट जाएगा। इसलिए अभी उसे इसी पर फिर से राजी करने की कोशिश हो रही है।
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जरूरत पर हथियार चलाने की मिल सकती है छूट
रक्षा मंत्रालय में 1996 के भारत-चीन समझौते की धारा 6 को ले कर भी गंभीरता से विचार चल रहा है। इस धारा के मुताबिक दोनों पक्ष किसी भी स्थिति में एक-दूसरे पर हथियारों का इस्तेमाल नहीं कर सकते। इसी वजह से सोमवार को भारतीय सैनिकों ने हथियार होने के बावजूद चीनियों पर उनका इस्तेमाल नहीं किया। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने गुरुवार को भी साफ किया कि उस दौरान कर्नल सहित सभी सैनिक हथियारबंद थे। जयशंकर ने यह बात राहुल गांधी के उस आरोप के जवाब में कही है जिसमें उन्होंने सैनिकों के पास हथियार नहीं होने की बात कही थी।
सूत्रों का कहना है कि जल्दी ही नियंत्रण रेखा पर मौजूद कमांडर को जरूरत के अनुसार हथियारों के इस्तेमाल की छूट दी जा सकती है। ऐसे में ये अपनी जान बचाने के लिए ये हथियार का इस्तेमाल भी कर सकेंगे। आम तौर पर देश की चौकी या जमीन को बचाने के लिए भी इन्हें हथियार का इस्तेमाल करने की छूट होती है, लेकिन चीन के साथ यहां सीमा का निर्धारण नहीं होने की वजह से यह छूट आगे भी नहीं होगी।
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…तो ठुकरा देंगे विश्व बैंक की फंडिंग
चीन की कंपनी को रेलवे की परियोजना से बाहर किए जाने के फैसले पर अगर परियोजना का निवेशक विश्व बैंक कोई एतराज करता है तो भारत परियोजना को अपने दम पर चलाने के लिए भी तैयार है। रेलवे के शीर्ष सूत्रों का कहना है कि 417 किलोमीटर की डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर परियोजना के सिग्नलिंग के काम से चीनी कंपनी बीजिंग नेशनल रेलवे को हर हाल में बाहर किया जाएगा।
गुरुवार को रेलवे बोर्ड के चेयरमैन वीके यादव ने भी कहा कि कंपनी को शर्त के मुताबिक तीन साल में काम पूरा नहीं करने के लिए हटाया गया है। रेलवे और टेलीकॉम विभाग के साथ ही अगले कुछ दिन के अंदर ही विभिन्न क्षेत्रों में ऐसे कदमों की पहचान की जा रही है। ताकि चीन को आर्थिक मोर्चे पर भी कड़ा संदेश दिया जा सके।
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