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आपको बता दें कि 1979 में चीनी सेना को वियतनाम के सामने हार का सामना करना पड़ा था। वियतनाम के दावे के अनुसार उन्होंने चीन के 62,500 सैनिक मारे थे। इसके साथ ही पीएलए की 550 गाड़ियां भी तबाह कर दी थीं। बावजूद इसके चीन ने PLA में कोई सुधार नहीं किया। देंग शियाओ पिंग के कार्यकाल में पीएलए में भ्रष्टाचार का घुन लग गया, जिसने चीनी सेना को भीतर से खोखला कर दिया। सूत्रों की मानें तो पीएलए पूरी तरह से भौतिक सुख में डूब चूकी है, उसकी दुनिया लग्जरी हो चुकी है। यही वजह है कि पाकिस्तान सेना से उसकी गहरी दोस्ती है, क्योंकि पाक सेना भी भ्रष्टाचार में लिप्त है।
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2012 में शी जिनपिंग के राष्ट्रपति चुने जाते ही, PLA में बदलावों का दौर शुरू हुआ। पीएलए में भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी जमी हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सेंट्रल मिलिट्री कमिशन के दो उपाध्यक्षों को निकालना पड़ा। इनमें से एक जनरल पर रिश्वतखोरी के आरोप लगे थे। जिनपिंग ने PLA में बड़ा बदलाव करते हुए 100 से ज्यादा जनरल स्तर के अधिकारियों को निकाल दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि जिनपिंग के इस कदम से उनके दुश्मनों की लिस्ट लंबी हो गई।
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सामरिक मामलों के विशेषज्ञों की मानें तो भ्रष्टाचार में लिप्त PLA सीधी लड़ाई से बचती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण 2017 में डोकलाम विवाद है। भूटान के डोकलाम पर चीनी कब्जे के खिलाफ जब भारतीय सेना ने अपना सख्त रुख दिखाया तो पीएलए को पीछे हटना पड़ा। अब गलवान घाटी में भी पीएलए की फजीहत ही हुई है। भारतीय सैनिकों ने यहां पीएलए को पैट्रोलिंग पॉइंट 14 पर कब्जा जमाने से रोक दिया।
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इसके अलावा भारतीय सेना की ताकत के सामने चीन की तैयारी भी अधूरी ही नजर आती है। भारतीय वायु सेना की तीन कमानों के पास 270 लड़ाकू विमान और 68 ग्राउंड अटैक एयरक्राफ्ट्स हैं। जबकि चीन के पास केवल 158 फाइटर जेट्स और कुछ ड्रॉन हैं।