ये भी पढ़ेंः भारत की आजादी की लड़ाई के 10 प्रमुख नायक 1. प्रथम विश्व युद्ध भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड ने गांधी को एक युद्ध सम्मेलन में दिल्ली आमंत्रित किया। ब्रिटिश साम्राज्य का विश्वास हासिल करने के लिए गांधी प्रथम विश्व युद्ध के लिए सेना में लोगों को भर्ती होने के लिए वह सूची में शामिल करने के लिए सहमत हुए। हालांकि उन्होंने वायसराय को लिखा और कहा कि वह “किसी को भी ना तो मारेंगे ना ही घायल करेंगे फिर चाहे वो दोस्त हो या दुश्मन।”
2. चंपारण बिहार में चंपारण आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता राजनीति में गांधी की पहली सक्रिय भागीदारी थी। चंपारण के किसानों को इंडिगो उगाने के लिए मजबूर किया जा रहा था और विरोध करने पर उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा था। किसानों ने गांधी की मदद मांगी और एक अहिंसक विरोध के माध्यम से गांधी अंग्रेजों से रियायतें जीतने में कामयाब रहे।
3. खेड़ा जब गुजरात का एक गाँव खेड़ा बुरी तरह बाढ़ की चपेट में आ गया, तो स्थानीय किसानों ने शासकों से कर माफ करने की अपील की। यहां गांधी ने एक हस्ताक्षर अभियान शुरू किया जहां किसानों ने करों का भुगतान न करने का संकल्प लिया।
उन्होंने ममलतदारों और तलतदारों (राजस्व अधिकारियों) के सामाजिक बहिष्कार की भी व्यवस्था की। 1918 में सरकार ने अकाल समाप्त होने तक राजस्व कर के भुगतान की शर्तों में ढील दी। ये भी पढ़ेंः आजादी के दिन को सेलिब्रेट करने के लिए मैसेज-वॉलपेपर्स
4. खिलाफत आंदोलन मुस्लिम आबादी पर गांधी का प्रभाव उल्लेखनीय था। यह खिलाफत आंदोलन में उनकी भागीदारी से स्पष्ट था। प्रथम विश्व युद्ध के बाद मुसलमानों ने अपने खलीफा या धार्मिक नेता की सुरक्षा के लिए आशंका जताई और खलीफा के पतन की स्थिति के खिलाफ लड़ने के लिए दुनिया भर में विरोध प्रदर्शन किया जा रहा था।
गांधी अखिल भारतीय मुस्लिम सम्मेलन के एक प्रमुख प्रवक्ता बन गए और दक्षिण अफ्रीका में अपने भारतीय एम्बुलेंस कॉर्प्स दिनों के दौरान अंग्रेजों से मिले पदक लौटा दिए। खिलाफत में उनकी भूमिका ने उन्हें कुछ ही समय में राष्ट्रीय नेता बना दिया।
5. असहयोग आंदोलन गांधी ने महसूस किया था कि भारतीयों से मिले सहयोग के कारण ही अंग्रेज भारत में आ सके थे। इसे ध्यान में रखते हुए उन्होंने असहयोग आंदोलन का आह्वान किया। कांग्रेस के समर्थन और उनकी अदम्य भावना के साथ उन्होंने लोगों को आश्वस्त किया कि शांतिपूर्ण असहयोग स्वतंत्रता की कुंजी है। जलियांवाला बाग नरसंहार के अशुभ दिन ने असहयोग आंदोलन को गति दी। गांधी ने स्वराज या स्वशासन के लक्ष्य को निर्धारित किया जो तब से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का आदर्श बन गया।
ये भी पढ़ेंः तिरंगा और विजयी विश्व तिरंगा प्यारा से जुड़ी चौंकाने वाली बातें 6. दांडी आंदोलन इसे नमक मार्च ( march for salt by mahatma gandhi ) के रूप में भी जाना जाता है। गांधी की नमक यात्रा को स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है। 1928 की कलकत्ता कांग्रेस में गांधी ने घोषणा की कि अंग्रेजों को भारत को प्रभुत्व का दर्जा देना चाहिए या देश पूरी आजादी के लिए क्रांति में बदल जाएगा। अंग्रेजों ने इस पर ध्यान नहीं दिया।
परिणामस्वरूप 31 दिसंबर 1929 को लाहौर में भारतीय ध्वज को फहराया गया और अगले 26 जनवरी को भारतीय स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया गया। फिर गांधी ने मार्च 1930 में नमक कर के खिलाफ सत्याग्रह अभियान शुरू किया। उन्होंने नमक बनाने के लिए गुजरात के अहमदाबाद से दांडी तक 388 किलोमीटर की दूरी तय की। हजारों लोग उनके साथ शामिल हुए और इसे भारतीय इतिहास के सबसे बड़े मार्च ( protest by mahatma gandhi ) में से एक बना दिया।
7. भारत छोड़ो आंदोलन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गांधी ने ब्रिटिश साम्राज्य पर सुनिश्चित ढंग से प्रहार करने की ठानी, जिससे भारत से अंग्रेजों का बाहर निकलना सुरक्षित बन जाए। यह तब हुआ जब अंग्रेजों ने भारतीयों को युद्ध के लिए भर्ती करना शुरू किया।
गांधी ने कड़ा विरोध किया और कहा कि भारतीय एक ऐसे युद्ध में शामिल नहीं हो सकते हैं, जो लोकतांत्रिक उद्देश्यों के पक्ष में लड़ी जा रही हो, जबकि भारत स्वयं एक आजाद देश नहीं है। इस तर्क ने उपनिवेशवादियों की दो-मुंह वाली छवि को उजागर किया और आधे दशक के भीतर वे इस देश से बाहर हो गए।