यही कारण है कि भारत की स्वाधीनता के युद्ध के दौरान हर भारतीय के अंदर जोश भरने के लिए तिरंगा से जुड़ा एक गीत लिखा गया। इस गीत के सुनते ही हर भारतीय में जोश आ जाता था और आज भी यह ध्वज गीत उतना ही प्रासंगिक है। यह गीत है.. “विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा.. सदा शक्ति बरसाने वाला, प्रेम सुधा सरसाने वाला, वीरों को हरषाने वाला, मातृभूमि का तन-मन सारा.. झंडा उंचा रहे हमारा।”
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इस गीत के लिए लाखों भारतीयों ने अंग्रेजों की लाठियां और गोलियां खाई है.. लेकिन तिरंगा को कभी झुकने नहीं दिया। यह गीत आज भी हर भारतीय को प्रेरणा देता है। आइए जानते हैं इस गीत और राष्ट्रीय ध्वज (National Flag Tiranga) से जुड़ी कुछ खास बातें..
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आपको बता दें कि विजय विश्व तिरंगा प्यारा.. गीत की रचना उत्तर प्रदेश के कानपुर के करीब नरवल गांव के रहने वाले लेखक श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’ ने की थी। श्यामलाल गुप्त की रुची कविता में काफी थी और उनकी कविता से तत्कालीन महान लेखक गणेश शंकर ‘विद्यार्थी’ काफी प्रभावित थे। चूंकि उस समय कांग्रेस ने अपना झंडा तो तय कर लिया था, लेकिन उसके लिए कोई प्रभावशाली गीत नहीं था।
ऐसे में गणेश शंकर विद्यार्थी ने श्यामलाल से आग्रह किया कि वे एक ध्वज गीत लिख दें। श्यामलाल ने अपनी स्वीकृति दे दी, पर काफी समय बीत जाने के बाद भी ध्वज गीत तैयार नहीं हुआ। इसपर विद्यार्थी जी एक बार गुस्सा हो गए और कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि बहुत घमंड हो गया है। चाहे जो भी हो मुझे हर हाल में कल सुबह तक ध्वज गीत चाहिए।
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इसके बाद श्यामलाल गुप्त ने रात में ही एक गीत की रचना की.. विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा.. सदा शक्ति बरसाने वाला, प्रेम सुधा सरसाने वाला, वीरों को हरषाने वाला, मातृभूमि का तन-मन सारा..झंडा उंचा रहे हमारा। हालांकि इस गीत में विजयी विश्व को लेकर कई लोगों ने आपत्ति जताई.. इसपर श्यामलाल ने कहा कि इसका अर्थ विश्व को जीतना नहीं है बल्कि विश्व में विजय हासिल करना है। इसके बाद से यह गीत काफी लोकप्रिय हो गया।
19 फरवरी 1938 के हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में खुद राष्ट्रपिता महात्मां गांधी और जवाहर लाल नेहरु ने इस गीत को गाया, जिससे पूरे देश के नागरिकों में एक जोशभर गया। इसी अधिवेशन में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने इसे देश के “झण्डा गीत” की स्वीकृति दे दी।
सुख, शांति और समृद्धि का प्रतीक है राष्ट्रीय ध्वज
आपको बता दें कि हमारे देश की आन-बान-शान राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा सुख शांति और समृद्धि का प्रतीक है। इस ध्वज में मौजूद तीन रंग की पट्टियां और बीच में गहरे नीले रंग का अशोक चक्र का अपना एक विशेष महत्व है। सफेद पट्टी पर अंकित नीरे रंग के अशोक चक्र में 24 तीलियां हैं जो हमेशा देश को गतिमान बनाए रखने की प्रेरणा देता है। ध्वज की लम्बाई एवं चौड़ाई का अनुपात 2:3 होता है। इस ध्वज की परिकल्पना पिंगली वैंकैया ने की थी। इसे 22 जुलाई 1947 में भारतीय संविधान-सभा की बैठक में राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर अंगीकार किया गया।
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ध्वज की तीर रंग की पट्टियां देश को तीन संदेश देती हैं और हर भारतीय को एक प्रेरणा देती है। सबसे उपर लगे केसरिया रंग की पट्टी ऊर्जा का प्रतीक है जो हमें ऊर्जा संरक्षण और रक्तदान और हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। वहीं मध्य में स्थित सफेद पट्टी शांति, सद्भाव, और बंधुत्व की प्रेरणा देता है। वहीं सबसे नीच लगे हरे रंग का पट्टी देश को हरियाली की ओर बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है। इसके अलावा सफेद पट्टी पर लगे नीले रंग का चक्र हमेशा गतिशील रहने और जल संरक्षण की प्रेरणा देता है।
अशोक चक्र का व्यास लगभग सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है। इसे धर्म चक्र भी कहा जाता है। इसे तृतीय शताब्दी ईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ मंदिर से लिया गया है। राष्ट्रीय ध्वज के लिए हमेशा खादी के कपड़े का इस्तेमाल होता है। तिरंगे को देश के लिए समर्पित लोगों के सम्मान में भी फहराया जाता है।