बुधवार की बारिश और अलर्ट दरअसल, राष्ट्रीय राजधानी और इसके नजदीकी इलाकों में बुधवार सुबह तेज हवाओं के साथ भारी ( rain in delhi ncr ) बारिश हुई। इससे कई इलाकों में पानी भर गया और यातायात भी बाधित हुआ। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के मुताबिक अरब सागर से दक्षिण-पश्चिमी हवाएं और बंगाल की खाड़ी से दक्षिण-पूर्वी हवाएं राजधानी क्षेत्र में नमी भेज रही हैं। विभाग ने दो दिनों के लिए राष्ट्रीय राजधानी में ऑरेंज अलर्ट जारी किया है और चेतावनी दी है कि निचले इलाकों में पानी भर सकता है।
ट्रैफिक पुलिस ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के पास कई निचले इलाकों में, पालम, बदरपुर और सरिता विहार फ्लाईओवर के पास, बत्रा अस्पताल के पास एमबी रोड, पंजाबी बाग, पुल प्रह्लादपुर अंडरपास के आसपास समेत कई इलाकों में जलभराव की चेतावनी जारी की है। दिल्ली के क्षेत्रीय मौसम पूवार्नुमान केंद्र के मुताबिक सफदरजंग में पिछले दो दिनों में 31.8 मिमी बारिश ( Delhi Rain ) दर्ज की गई है। बारिश को लेकर मौसम विभाग के मुताबिक 15 मिमी से कम बारिश को हल्की, 15 से 64.5 मिमी के बीच मध्यम और 64.5 मिमी से अधिक को भारी बारिश माना जाता है।
यमुना नदी का कैंचमेंट राजधानी दिल्ली के भूभाग को ध्यान में रखते हुए देखें तो दिल्ली तक यमुना ( Yamuna River ) कैचमेंट को दो भागों में बांटा गया है। पहला हिस्सा हिमालय के स्रोत से हरियाणा के कलनौर तक का ऊपरी कैचमेंट है- जिसमें हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों और पश्चिम उत्तर प्रदेश की पहाड़ियां शामिल हैं, जबकि निचले कैंचमेंट का दूसरा हिस्सा कलानौर से दिल्ली रेल पुल तक है जिसमें पश्चिम उत्तर प्रदेश और हरियाणा शामिल है।
दिल्ली के भीतर यमुना का प्रवाह प्रमुख रूप से ताज़ेवाला ( Tajewala and Okhla ) हेडवर्क से प्रभावित है। कैचमेंट एरिया में भारी बारिश की स्थिति में ताजेवाला से अतिरिक्त पानी छोड़ा जाता है। नदी के प्रवाह के स्तर के नीचे की धारा के आधार पर दिल्ली में यमुना के स्तर ( yamuna river water level ) को बढ़ने में लगभग 48 घंटे लगते हैं। जल स्तर में वृद्धि से शहर के नालों ( city drainage system ) पर भी बैकफ्लो प्रभाव पड़ता है। शहर की सीमा से बाहर फैले कैंचमेंट एरिया वाले 18 प्रमुख नालों के अपने नेटवर्क के कारण भी शहर में बाढ़ का भी खतरा होता है।
बाढ़ का खतरा यमुना में बाढ़ और नजफगढ़ ड्रेन सिस्टम के कारण दिल्ली को अतीत में विभिन्न स्तरों की बाढ़ का सामना करना पड़ा है। पिछले 33 वर्षों के दौरान यमुना ने अपने खतरे के स्तर (204.83 मीटर पर) को 25 बार पार किया है। वर्ष 1900 के बाद से दिल्ली ने 1924, 1947, 1976, 1978, 1988 और 1995 में छह बड़ी बाढ़ ( Flood in Yamuna River ) का सामना किया है।
इनमें 6 सितंबर 1978 को यमुना नदी का जल स्तर पुराने रेल पुल पर खतरे के निशान 204.49 मीटर से 2.66 मीटर ऊपर पहुंच गया था। वहीं, 27 सितंबर 1988 को खतरे के निशान से ऊपर बहते हुए 206.92 मीटर पर जल स्तर पहुंचने का दूसरा रिकॉर्ड है। वर्ष 1977, 1978, 1988 और 1995 में दिल्ली में आई उच्च तीव्रता की बाढ़ से शहर के लोगों को जीवन और संपत्ति का नुकसान उठाना पड़ा।
दिल्ली में पर्यावरण की स्थिति रिपोर्ट: WWF फॉर नेचर-इंडिया (1995) में बताया गया है कि 1978 के बाद से दिल्ली में बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। 1980 में ताजेवाला में 2.75 लाख क्यूसेक पानी छोड़े जाने के कारण दिल्ली में पल्ला के पास बांध पर 212.15 मीटर का बाढ़ स्तर पहुंच गया था।
दिल्ली में बाढ़ संभावित क्षेत्र दिल्ली में बाढ़ की स्थिति केंद्रीय जल आयोग द्वारा तैयार किए गए बाढ़ एटलस मानचित्र में अनुमानित है। इसके मुताबिक यमुना के जल स्तर में वृद्धि के संबंध में बाढ़ के जोखिम के आधार पर दिल्ली के बाढ़ संभावित क्षेत्रों को 13 इलाकों में वर्गीकृत किया गया है। ये यमुना में 199 मीटर से 212 मीटर के स्तर तक पानी को कवर करते हैं।
इस बाढ़ संभावित नक्शे में यमुना के पश्चिमी तट पर उत्तरी दिल्ली का हिस्सा और लगभग पूर्वी तट पर पूरा ट्रांस यमुना क्षेत्र शामिल है। इसके अलावा दिल्ली बाढ़ नियंत्रण आदेश ने दिल्ली को चार बाढ़ सेक्टरों में बांटा है। इनमें शहादरा, वज़ीराबाद-बाबरपुर, अलीपुर और नांगलोई-नजफगढ़ सेक्टर शामिल हैं।
हालांकि असुरक्षित बाढ़ संभावित क्षेत्र दक्षिण पूर्व की ओर केवल 1.7 फीसदी या 25 किमी है और उत्तर पूर्वी भागों में लगभग 5 फीसदी या 74 वर्ग किमी इलाका सुरक्षित है। हर साल यमुना ( yamuna river in delhi ) में खतरे के निशान से ऊपर जल स्तर के पहुंचने पर बड़ी आबादी को इन इलाकों से निकालकर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जाता है।
दिल्ली में जल स्तर की इस बढ़ोतरी के मुख्य कारण प्राकृतिक नहीं हैं, और यह ताजेवाला से छोड़े जाने वाले अतिरिक्त पानी के चलते होता है। जल स्तर में बढ़ोतरी इससे जुड़ी नालियों ( drainage system ) में वापस प्रवाह का कारण बनती है और शहर के जल निकासी नेटवर्क पर प्रभाव डालती है। इससे कई मानसून संबंधी बीमारियों के बढ़ने का भी खतरा मंडराने लगता है।
स्थानीय बाढ़ राजधानी में स्थानीय बाढ़, एक महत्वपूर्ण घटना है जो हाल के वर्षों के दौरान बढ़ रही है। शहरी क्षेत्रों की प्रमुख विशेषता अभेद्य सतह यानी सड़क, फुटपाथ, घर आदि से ढके ज्यादातर इलाके होते हैं। विकास की उच्च दर के कारण खुली सतह के परिणामी नुकसान के साथ-साथ ज्यादातर जमीनी इलाकों की पानी-धूप बंद हो गई। इससे मध्यम स्तर की बारिश के बाद निचले इलाकों में भी बाढ़ आ जाती है।
इस मामले में एक और पहलू नदी ( yamuna river water ) का है क्योंकि नदी अपने तटबंधों के भीतर पहले से ही उच्च स्तर पर बह रही है। इस प्रकार पानी शहर के क्षेत्रों में प्रवेश कर जाता है और इसे यांत्रिक रूप से पंप करने और स्थिति को नियंत्रण में लाने में कई दिन लगते हैं। इसी तरह, पिछले कुछ वर्षों के दौरान शहर के 18 प्रमुख नालों के कारण बाढ़ भी एक आम घटना बन गई है। पहले से ही शहर से होने वाले प्रवाह के दबाव में इन नालियों में यमुना से रिवर्स फ्लो होता हैं, जिसके परिणामस्वरूप तटीय इलाकों में बाढ़ आती है।
बाढ़ संभावित इलाकों के पैटर्न के एक करीबी विश्लेषण से पता चलता है कि उच्च जोखिम वाले वे क्षेत्र हैं जिनकी पहचान पहले से अनियोजित या खराब नियोजित क्षेत्रों के रूप में की गई है। इनमें उच्च जनसंख्या घनत्व और उप मानक आवास संरचनाएं हैं। इनमें उत्तरी दिल्ली और ट्रांस यमुना क्षेत्र शामिल हैं। इन क्षेत्रों में आने वाली कुछ कॉलोनियां 1978 के बाढ़ स्तर से 3 से 4 मीटर नीचे के स्तर पर हैं।
बाढ़ के सबसे अधिक जोखिम में आने वालों में गांवों में रहने वाले परिवार और नदी की तलहटी ( Yamuna riverbed damage ) के भीतर अनधिकृत कॉलोनियां शामिल हैं। दिल्ली में ऐसे 15,000 से अधिक परिवार हैं, जिनमें 75,000 से अधिक व्यक्ति शामिल हैं। तटबंधों के गलत किनारे पर मौजूद ये लोग बाढ़ के किनारे रहते हैं और सबसे पहले लोग अपने घर को पानी में डूबा हुआ पाते हैं।