दिल्ली हिंसा में शहीद हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल की मौत की असल वजह आई सामने, ऑटोप्सी रिपोर्ट में हुआ खुलासा मीडिया से बातचीत में गर्ग ने कहा, “अगर सुप्रीम कोर्ट या दिल्ली हाईकोर्ट ने मेरी याचिका पर वक्त रहते सुनवाई कर ली होती, तो उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा को टाला जा सकता था, जिसमें 17 से ज्यादा लोगों की जानें चली गईं।”
याचिकाकर्ता ने कहा कि हेड कॉन्स्टेबल की मौत और कई अन्य अधिकारियों के घायल होने से दिल्ली पुलिस हतोत्साहित हो गई है। दो दिनों से उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भड़की हिंसा सांप्रदायिक बन गई और इसमें कम से कम 20 लोगों की मौत हो गई है, जबकि करीब 200 लोगों के घायल होने की खबर है।
बंगाल के रास्ते सांप के जहर की तस्करी करने वाले तीन धरे, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में 15 करोड़ है कीमत इस संबंध में गर्ग ने कहा, “हम देश भर में विरोध प्रदर्शनों के लिए व्यापक दिशा-निर्देश की मांग कर रहे हैं। इसके लिए एक सुस्पष्ट प्रणाली होनी चाहिए। विरोध केवल पूर्व-अनुमति के साथ और निर्धारित स्थान पर ही होना चाहिए”
उन्होंने आगे कहा, “देश भर में शाहीन बाग की तरह 100 से ज्यादा प्रदर्शन जारी हैं। यह प्रायोजित प्रदर्शन हैं। नागरिकता संशोधन कानून में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसके चलते इसके विरोध में प्रदर्शन की जरूरत है।”
नंद किशोर गर्ग और अमित साहनी द्वारा उनके वकील शशांक देव सुधी के जरिये केंद्र और संबंधित अन्य से कालिंदी कुंज के नजदीक शाहीन बाग से प्रदर्शनकारियों को हटाए जाने के लिए उचित दिशा-निर्देश देने की मांग की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता ने कहा परेशानी है कि असहमति को राष्ट्र-विरोधी माना जा रहा है, जो गलत है इस याचिका में भारत सरकार समेत प्रतिवादियों के लिए दिशा-निर्देश मांगे गए हैं, ताकि सार्वजनिक स्थानों पर व्यवधान या बाधा डालने वाले विरोध या आंदोलन आयोजित करने पर सीधे प्रतिबंध के लिए व्यापक, विस्तृत और संपूर्ण दिशा-निर्देश निर्धारित करें।
गौरतलब है कि बीते दिसंबर मध्य से नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और प्रस्तावित नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (NRC) के विरोध में राजधानी के शाहीन बाग इलाके में सैकड़ों की तादाद में महिला-पुरुष प्रदर्शन पर बैठे हैं।