भार्गव ने कहा कि बच्चों में ऐस रिसेप्टर कम होते हैं, इसलिए उन्हें संक्रमण का खतरा वयस्कों के मुकाबले कम होता है, और यदि संक्रमण होता भी है तो ज्यादा गंभीर नहीं होता है। इसी वजह से कोरोना संक्रमण कम होने के बाद प्राइमरी स्कूल खोलना उचित रहेगा। इसके बाद ही सैकेंडरी स्कूल खोले जाने चाहिए। हालांकि उन्होंने कहा कि स्कूल खुलने से पूर्व सभी टीचर्स तथा स्कूल में कार्यरत स्टाफ का वैक्सीनेशन अवश्य होना चाहिए।
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भार्गव ने आगे कहा कि कुछ पश्चिमी देशों यथा डेनमार्क, नार्वे और स्वीडन में कोरोना की पहली और दूसरी लहर के दौरान भी प्राइमरी स्कूल्स ओपन रखे गए थे। वहां इन स्कूलों को कभी भी बंद नहीं किया गया। भार्गव ने कहा कि वयस्कों की तुलना में बच्चे बेहतर तरीके से कोरोना संक्रमण से निपट सकते हैं। आपको बता दें कि हमारे शरीर के वे प्रोटीन मोलिक्यूल्स जिनके जरिए कोरोना वायरस शरीर में प्रवेश कर पाता है, को ही रिसेप्टर कहा जाता है। इन प्रोटीन कोशिकाओं से वायरस चिपक जाता है और बॉडी को संक्रमित कर देता है। हालांकि आईसीएमआर के राष्ट्रीय सर्वे में यह भी सामने आया है कि छह वर्ष से नौ वर्ष की आयु के बच्चों में एंटीबॉडी 57.2 प्रतिशत हैं जो काफी हद तक वयस्कों के ही समान है।
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तीसरी लहर का आना अभी अनिश्चितआईसीएमआर के महानिदेशक ने कहा कि कोरोना की तीसरा लहर के बारे में अभी नहीं कहा जा सकता कि यह आएगी या नहीं। यदि लोगों की प्रतिरोधक क्षमता कम होती है और कोई नया संक्रामक वेरिएंट आ जाता है जो मौजूदा वैक्सीन से बच सकता है तो तीसरी लहर का खतरा बढ़ सकता है। इसी तरह यदि कोरोनो प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया तो भी तीसरी लहर आने की पूरी संभावनाएं हैं।