आपको बता दें कि सोमवार सुबह ‘फानी’ चेन्नै से 880 किलोमीटर दक्षिणपूर्व में था और 30 अप्रैल से खतरा बढ़ने की आशंका है, चक्रवाती तूफान का उत्तर पश्चिम की ओर बढ़ना जारी रहेगा और यह 1 मई से अपना रास्ता बदलकर उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ेगा।
भारत से शुरू किए चक्रवातों के नाम
दुनिया में तूफानों के नाम की शुरुआत तो 1953 से हुई लेकिन चक्रवातों के नाम 2004 से पड़ने लगे। खास बात यह है कि इसकी शुरुआत भारत से ही हुई। दरअसल भारत की पहल पर ही 8 तटीय देशों ने इसको लेकर समझौता किया। समझौता करने वाले देशों में भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार, मालदीव, श्रीलंका, ओमान और थाईलैंड शामिल हैं। अंग्रेजी वर्णमाला के अनुसार सदस्य देशों के नाम के पहले अक्षर के अनुसार उनका क्रम तय किया गया है। जैसे ही चक्रवात इन आठ देशों के किसी हिस्से में पहुंचता है, सूची में मौजूद अलग सुलभ नाम इस चक्रवात का रख दिया जाता है। इससे तूफान की न केवल आसानी से पहचान हो जाती है बल्कि बचाव अभियानों में भी इससे मदद मिलती है।
दोहराए नहीं जाते नाम
चक्रवातों के नामकरण में इस बात का ध्यान जरूर रखा जाता है कि किस भी तरह ये दोहराए नहीं जाएं। यानी एक बार जो नाम रख दिया वो दोबारा नहीं रखा जा सकता। अब तक चक्रवात के करीब 64 नामों को सूचीबद्ध किया जा चुका है। कुछ समय पहले जब क्रम के अनुसार भारत की बारी थी तब ऐसे ही एक चक्रवात का नाम भारत की ओर से सुझाये गए नामों में से एक ‘लहर’ रखा गया था।
ऐसे आते हैं तूफानों के नाम
चक्रवातो से पहले ही तूफानों के नाम रखे जाने लगे थे। इसकी शुरुआत अटलांटिक क्षेत्र में 1953 में एक संधि के तहत हुई थी। अटलांटिक क्षेत्र में ह्यूरिकेन और चक्रवात का नाम देने की परंपरा तभी से चली आ रही है। जो मियामी स्थित नैशनल हरिकेन सेंटर की पहल पर शुरू हुई थी। उस दौरान अमरीका सिर्फ महिलाओं के नाम पर तो ऑस्ट्रेलिया केवल भ्रष्ट नेताओं के नाम पर तूफानों का नाम रखते थे। लेकिन 1979 के बाद से एक मेल व फिर एक फीमेल नाम रखा जाता है।
चक्रवातो से पहले ही तूफानों के नाम रखे जाने लगे थे। इसकी शुरुआत अटलांटिक क्षेत्र में 1953 में एक संधि के तहत हुई थी। अटलांटिक क्षेत्र में ह्यूरिकेन और चक्रवात का नाम देने की परंपरा तभी से चली आ रही है। जो मियामी स्थित नैशनल हरिकेन सेंटर की पहल पर शुरू हुई थी। उस दौरान अमरीका सिर्फ महिलाओं के नाम पर तो ऑस्ट्रेलिया केवल भ्रष्ट नेताओं के नाम पर तूफानों का नाम रखते थे। लेकिन 1979 के बाद से एक मेल व फिर एक फीमेल नाम रखा जाता है।
इसलिए जरूरी है नामकरण
तूफानों और चक्रवातों के नामकरण इसलिए जरूरी है क्योंकि इससे वैज्ञानिकों और आम जनता को याद रह सके। आपको बता दें अब तक 32 तूफानों की सूची में भारत ने चार नाम दिए हैं इनमें लहर, मेघ, सागर और वायु प्रमुख हैं। वहीं इससे पहले तूफान बांग्लादेश हेलेन नाम दे चुका है। जबकि फानी नाम भी बांग्लादेश का दिया हुआ है। पिछले वर्ष आए तूफान तितली का नाम पाकिस्तान ने दिया था। वहीं ओमान ने हुदहुद और म्यांमार ने नानुक तूफान का नाम दिया।
तूफानों और चक्रवातों के नामकरण इसलिए जरूरी है क्योंकि इससे वैज्ञानिकों और आम जनता को याद रह सके। आपको बता दें अब तक 32 तूफानों की सूची में भारत ने चार नाम दिए हैं इनमें लहर, मेघ, सागर और वायु प्रमुख हैं। वहीं इससे पहले तूफान बांग्लादेश हेलेन नाम दे चुका है। जबकि फानी नाम भी बांग्लादेश का दिया हुआ है। पिछले वर्ष आए तूफान तितली का नाम पाकिस्तान ने दिया था। वहीं ओमान ने हुदहुद और म्यांमार ने नानुक तूफान का नाम दिया।
आने वाले तूफानों के नाम
आगामी तूफानों में गाजा, फेथाई, वायु, हिक्का, क्यार, माहा, बुलबुल, पवन और अम्फान हैं। यहां यह ध्यान रखना जरूरी है कि ये सभी तूफान उत्तरी हिंद महासागर से संबंधित हैं।
आगामी तूफानों में गाजा, फेथाई, वायु, हिक्का, क्यार, माहा, बुलबुल, पवन और अम्फान हैं। यहां यह ध्यान रखना जरूरी है कि ये सभी तूफान उत्तरी हिंद महासागर से संबंधित हैं।