विविध भारत

कोरोना महामारी के चलते सरकार ने दी जेंडर निर्धारण परीक्षण में 30 जून तक छूट, गर्भपात में बढ़ोतरी की आशंका

माकपा पोलित ब्यूरो की सदस्य वृंदा करात ने डॉ. हर्षवर्धन को लिखी चिट्ठीपीसीपीएनडीटी नियमों में छूट पर जताई गर्भपात में बढ़ोतरी की आशंका इस निर्णय से पहले तक था सभी के लिए गर्भपात का रिकॉर्ड रखना बाध्यकारी

Apr 09, 2020 / 11:05 am

Dhirendra

नई दिल्ली। कोरोना महामारी (Coronavirus Pandemic) के मदृदेनजर केंद्र सरकार ने गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम ( पीसीपीएनडीटी ) को 30 जून तक देश में निलंबित रखने को निर्णय लिया है। विशेषज्ञों को डर है कि सरकार के इस निर्णय से भारत में जेंडर आधारित गर्भपात ( sex-selective abortions ) में बढ़ोतरी हो सकती है। फिर से गर्भपात टेंड में आ जाएगा।
कोरोना संकट से उत्पन्न सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल के मद्देनजर स्वास्थ्य मंत्रालय ने समय बचाने और मरीजों के जल्द इलाज की गति बढ़ाने के प्रयास में इन नियमों में ढील देने का निर्णय लिया है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मंत्रालय द्वारा जारी 4 अप्रैल की अधिसूचना के अनुसार अल्ट्रासाउंड करने वाली क्लीनिकों को 30 जून तक इस तरह के विस्तृत रिकॉर्ड को बनाए रखने की आवश्यकता नहीं है।
केंद्र के इस निर्णय ने लैंगिक कार्यकर्ताओं और नेताओं की चिंताओं को बढ़ा दिया है। इन लोगों का दावा है कि पीसीपीएनडीटी नियमों में छूट भारत में अवैध या जेंडर आधारित गर्भपात को बढ़ा सकती हैंं। 2018 में सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में 6.3 करोड़ महिलाएं जनसांख्यिकीय रूप से गायब थीं। 2.1 करोड़ लड़कियां अवांछित पाईं गई थीं। 2018 में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में पाया गया था कि 5 साल से कम उम्र की 2 लाख 39 हजार बच्चियों की मौत 2000-2005 बीच जेंडर संबंधी पक्षपात की उपेक्षा के कारण हुई।
माकपा पोलित ब्यूरो की सदस्य बृंदा करात ने स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को पत्र लिखकर कहा है कि पीसीपीएनडीटी कानून के प्रावधानों में ढील दिए जाने से अवैध तौर पर प्रसव पूर्व जेंडर परीक्षण कराए जाने का खतरा बढ़ गया है। उन्होंने कहा कि जेनेटिक काउन्सलिंग केन्द्र, जेनेटिक प्रयोगशालाएं, डायग्नोस्टिक सेंटर और अल्ट्रासांउड इमेजिंग सेंटर आवश्यक सेवाओं के दायरे में होने के कारण लॉकडाउन के दौरान खुल रहे हैं। ऐसे में कोरोना संकट के मद्देनजर हाल ही में पीसीपीएनडीटी के कुछ प्रावधानों में ढील दिए जाने के कारण इन केन्द्रों में अवैध रूप से प्रसव पूर्व जेंडर परीक्षण के मामले बढ़ सकते हैं।
क्या है पीसीपीएनडीटी एक्ट 1996
प्रीनेटल डायग्नोस्टिक तकनीक (लिंग चयन पर प्रतिबंध) नियम, 1996 के मुताबिक सभी अल्ट्रासाउंड क्लीनिकों को प्रसव पूर्व भ्रूण स्कैन के लिए आने वाली महिलाओं के विस्तृत रिकॉर्ड को बनाए रखना आवश्यक है। यह डाटा इसके बाद स्थानीय स्वास्थ्य निकायों को प्रस्तुत किया जाता है। ताकि जेंडर आधारित गर्भपात को रोकना संभव हो सके।

Hindi News / Miscellenous India / कोरोना महामारी के चलते सरकार ने दी जेंडर निर्धारण परीक्षण में 30 जून तक छूट, गर्भपात में बढ़ोतरी की आशंका

Copyright © 2025 Patrika Group. All Rights Reserved.