वैष्णव जन के सिद्धांतों चलने की सलाह देते थे गांधी दरअसल, राष्ट्रपिता के पसंदीदा भजन वैष्णव जन 600 साल पहले गुजराती कवि-संत नरसिंह मेहता के द्वारा लिखी गई यह भक्ति कविता, मानवता, सहानुभूति और सत्य के बारे में सोचने में सभी को प्रेरित करती है। इस भजन में समाहित संदेश पर गांधी जी हमेशा खड़े रहे और लोगों को इन्हीं सिद्धांतों पर चलने की सलाह देते रहे।
जब Lal Bahadur Shastri के कहने पर पूरा देश रखने लगा सप्ताह में एक दिन का उपवास, जानें क्यों? कुसुम कौल ने किया कश्मीरी भाषा में अनुवाद इस बात को ध्यान में रखते हुए सामाजिक कार्यकर्ता कुसुम कौल व्यास ने लोकप्रिय कश्मीरी गायक गुलजार अहमद गनेई और लेखक शाजा हकबारी के साथ महात्मा गांधी की 151वीं जयंती पर इसे लॉन्च कर वहां के लोगों तक पहुंचाना चाहती हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता कुसुम कौल व्यास ने कहा कि यह मूल रूप से एक गुजराती गीत है और इतने सारे लोग यह समझने में सक्षम नहीं हैं कि इसका वास्तव में क्या मतलब है? इसलिए मैंने सोचा कि अगर मैं इस गाने को कश्मीरी भाषा में अनुवाद करवा सकूं तो शायद शांति और सौहार्द का संदेश लोगों तक पहुंच जाए। शायद उनमें से कुछ लोग इस गाने के बारे में सोचना शुरू कर देंगे कि गांधीजी को यह भजन क्यों पसंद आया।
कठिन संघर्ष से देश के सर्वोच्च नागरिक बने Ramnath Kovind, ठुकरा दी थी आईएएस की नौकरी गांधी जी खुद नहीं मनाते थे जन्मदिन बता दें कि आज गांधी जयंती है। देशभर में हर साल इस दिवस को मनाया जाता है। लेकिन गांधीवादी रामचंद्र राही के मुताबिक शायद गांधीजी जन्मदिन नहीं मनाते थे, लेकिन लोग उनके जन्मदिन का मनाते थे। रामचंद्र राही ने 100 साल पहले गांधी के कहे कथनों का जिक्र करते हुए कहते हैं कि आज से 102 साल पहले, 1918 में गांधीजी ने अपना जन्मदिन मनाने वालों से कहा था ‘मेरी मृत्यु के बाद मेरी कसौटी होगी कि मैं जन्मदिन मनाने लायक हूं कि नहीं.’