भारत और चीन के बीच कई दौर की बातचीत चली कभी बेनतीजा तो कभी पीछे हटने जैसे अहम फैसलों पर सहमति बनी। सीमा पर संघर्ष और तनाव के बीच लद्दाख के पूर्वी इलाकों, पैंगोंग त्सो झील सहित तनाव वाले कई क्षेत्रों में दोनों देशों की सेनाएं महीनों तक एक-दूसरे के आमने-सामने रहीं।
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LJP में फूटः चिराग को चित करने के लिए ऐसे पड़ी बगावत की नींव, JDU ने भी निभाया अहम रोल पूर्वी लद्दाख की वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीन ने पिछले साल अप्रैल महीने से ही सीमा विवाद शुरू कर दिया था। इसके बाद 15 जून को पूरे मामले ने तब हिंसक रूप ले लिया, जब गलवान घाटी में भारत और चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ( PLA ) आमने-सामने की स्थिति में आ गई थी।
इस हिंसक टकराव में भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे, जबकि चीन के भी कई जवान मारे गए। एक साल से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी पूर्वी लद्दाख के कुछ प्वाइंट्स पर स्थिति जस-की-तस बनी हुई है।
एक साल में मजबूत हुई भारतीय सेना
गलवान हिंसा से भले चीन ने हिमाकत दिखाई हो, लेकिन इस घटना के बाद भारतीय सेना ने खुद को और मजबूत कर लिया है। बीते एक वर्ष में भारतीय सेना और वायुसेना ने अपनी ताकत को कई गुना बढ़ा लिया है।
यही वजह है कि सीमा पर चीन की किसी भी नापाक हरकत से निपटने के लिए भारतीय सेना पूरी तरह तैयार हैं।
रफाल का दम
इस एक वर्ष में जहां भारतीय सेना ने लद्दाख सेक्टर में अपनी उपस्थिति मजबूत कर ली है, वहीं रफाल लड़ाकू विमानों को अपने बेड़े में शामिल करके भारतीय वायु सेना पहले से ज्यादा ताकतवर बना लिया है।
रफाल के साथ-साथ मिग-29 और सुखोई-30 बेड़े उत्तरी सीमाओं पर आसमान में हावी रहे हैं और दूसरा स्क्वॉड्रन इस महीने के अंत तक संचालन के लिए तैयार हो जाएगा।
सीमा पर बढ़ाई ताकत
पूरी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारतीय सेना ने अपनी ताकत को और बढ़ा दिया है। लद्दाख समेत एलएसी पर अतिरिक्त जवानों की तैनाती कर दी गई है।
सेना ने अब चीन सीमा से निपटने के लिए एक अतिरिक्त स्ट्राइक कोर को तैनात किया है। ‘मथुरा स्थित वन स्ट्राइक कोर को लद्दाख में उत्तरी सीमाओं की ओर फिर से तैनात किया गया है और 17 माउंटेन स्ट्राइक कोर को पूरे पूर्वोत्तर राज्यों का जिम्मा सौंपा गया है। एक अतिरिक्त डिवीजन भी दी गई है। इसमें 10 हजार से ज्यादा जवान शामिल हैं।’
सीमा पर तेजी से बढ़ाया इंफ्रास्ट्रक्चर
सीमावर्ती इलाकों में पहले ही इंफ्रास्ट्रक्चर का काम शुरू हो गया था, लेकिन गलवान हिंसा के बाद इसमें और तेजी आई है। बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन ( BRO ) सड़क को सुगम बनाने के लिए दिन-रात काम में जुटा हुआ है।
दुनिया की सबसे ऊंची मोटर योग्य सड़क उमलिंग ला, मार्समिक ला या खारदुंग ला सहित सभी क्षेत्रों में सभी फॉरवर्ड जगहों के लिए सड़क संपर्क में सुधार किया गया है, उन्हें बीआरओ की मदद से पूरे साल सेना की आवाजाही के लिए खुला रखा गया।
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बंगाल में शुभेंदु अधिकारी की बढ़ी मुश्किल, इस मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट से लगा बड़ा झटका इस इंफ्रास्ट्रक्चर का सीधा फायदा कुछ ही समय में सैनिकों को तैनात करने की क्षमता में इजाफा करने को लेकर मिला है। बड़े-बड़े हथियारों को अब आसान सड़क मार्गों से जल्द से जल्द तैनात किया जा सकता है।
सेना के इंजीनियरों ने पिछले 11 महीनों के अंदर उन सुविधाओं को सीमा पर तैयार कर लिया, जिसकी प्लानिंग अगले पांच सालों में बनाने की थी। सैनिकों के लिए आवास से लेकर उनकी जरूरत की तमाम सुविधाओं को मुहैया करवा गया है। अधिकारियों की मानें तो सशस्त्र बलों की तैयारी अब उस स्तर पर है, जहां चीन या कोई अन्य विरोधी भारत को किसी भी तरह से आश्चर्यचकित नहीं कर सकता है।