केंद्र सरकार ने बिजली संशोधन अधिनियम 2020 को लेकर तैयार मसौदे ( Draft ) पर 17 अप्रैल को एक सूचना जारी कर सभी हितधारकों से 21 दिनों के भीतर अपना पक्ष रखने को कहा था। हालांकि बाद में इसकी समय सीमा बढ़कार 2 जून कर दिया गया।
संघीय ढांचे को कमजोर करने वाला बिजली संशोधन बिल के मसौदे को लेकर विपक्ष का आरोप है कि यह भारत के संघीय ढांचे ( Federal Structure ) को कमजोर करने वाला है। केंद्र सरकार इसके जरिए बिजली वितरण ( Electricity Distribution ) का निजीकरण करने का प्रयास कर रही है। संसद के आगामी सत्र में विपक्ष की योजना ( Opposition Plan ) इस मुद्दे पर जोर देने की है।
कांग्रेस, तेलंगाना राष्ट्र समिति ( TRS ), डीएमके के साथ वामपंथी दलों ने अभी से इस विधेयक का विरोध शुरू कर दिया है। विपक्ष ने इस बिल को किसानों और गरीब विरोधी बताया है।
Lockdown पर अमल में हुई लापरवाही ने बढ़ाई Corona की रफ्तार : ICMR स्वायत्तता छीनने की तैयारी तेलंगाना, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों ने आरोप लगाया है कि बिजली बिल में संशोधन कर केंद्र राज्य के स्वामित्व वाली डिस्कॉम और राज्य बिजली नियामकों की स्वायत्तता को छीन लेना चाहती है।
किसानों और घरेलू उपभोक्ता के खिलाफ यह बिल कृषि और घरेलू क्षेत्रों को प्रदान की जाने वाली सब्सिडी का प्रत्यक्ष लाभ अंतरण ( DBT ) का भी प्रावधान है। विपक्षी नेताओं का कहना है कि यह किसानों और गरीब घरेलू उपभोक्ताओं के हित के खिलाफ काम करेगा। विपक्ष का कहना है कि बिजली बिल भुगतान का तरीका राज्य सरकारों को तय करने के लिए छोड़ देना चाहिए।
Coronavirus : गंभीर मरीजों की संख्या के लिहाज से भारत अमरीका के बाद दूसरे नंबर पर पहले राज्य सरकारों से सलाह ले केंद्र छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ( CM Bhpesh Baghel ) भी सोमवार को विधेयक के खिलाफ कोरस में शामिल हो गए हैं। उन्होंने केंद्रीय राज्य मंत्री आरके सिंह को एक पत्र लिखकर सरकार से कोविद-19 ( Covisd-19 ) महामारी के मद्देनजर इस कदम को छोड़ने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा है कि कानून बनाने से पहले राज्यों से सलाह ली जानी चाहिए।
बिल के कार्यान्वयन से समाज के निचले वर्गों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा क्योंकि इसमें क्रॉस सब्सिडी का प्रावधान अव्यावहारिक है और किसानों और गरीबों के हित में नहीं है। अगर किसानों को सिंचाई के लिए दी जाने वाली बिजली पर सब्सिडी जारी नहीं की जाती है और इससे खाद्यान्न उत्पादन प्रभावित होगा तो किसान संकट का सामना करेंगे।
विवाद समाधान के लिए अलग से प्राधिकरण का प्रस्ताव इस विधेयक में एक विद्युत अनुबंध प्रवर्तन प्राधिकरण ( ECEA ) स्थापित करने का लक्ष्य है। इस प्राधिकरण के पास बिजली उत्पादन कंपनियों और वितरण कंपनियों के बीच विवादों को निपटाने के लिए एक सिविल कोर्ट के बराबर की शक्ति होगी। विधेयक का उद्देश्य ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों से बिजली की एक न्यूनतम न्यूनतम खरीद सुनिश्चित करना है। विधेयक का एक मकसद अधिनियम में प्रावधानों के अनुपालन के लिए कड़े दंडात्मक उपायों को लागू करना भी है।