बेंगलूरु। दो दशक पुरानी स्वदेशी मानव रहित टोही विमान निशांत परियोजना नाकाम साबित हुई है। इस परियोजना पर रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की बेंगलूरु आधारित इकाई वैमानिकी विकास प्रतिष्ठान (एडीई) ने 90 करोड़ रुपए से अधिक खर्च किया है। दरअसल, सेना ने चार निशांत टोही विमान (यूएवी) अपने बेड़े में शामिल किया था जिसमें से तीन विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गए।
तकनीकी विसंगति बनी रोड़ा
सेना द्वारा निशांत यूएवी नहीं खरीदने के फैसले के पीछे सबसे बड़ी वजह तकनीकी विसंगति बताई जा रही है। एक के बाद एक तीन विमानों के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद ही आगे निशांत नहीं खरीदने का फैसला किया गया है। पिछला निशांत 4 नवम्बर को जैसलमेर में दुर्घटनाग्रस्त हुआ था। उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार सेना ने डीआरडीओ से स्पष्ट कह दिया है कि अब उसे आगे और निशांत की आवश्यकता नहीं है। इससे परियोजना का दूसरे चरण बंद हो जाएगा। हालांकि, डीआरडीओ ने आठ निशांत के आर्डर मिलने की उम्मीद में लगभग 5 करोड़ रुपए का निवेश कर चुकी है जिसका उसे कोई लाभ नहीं मिलेगा।
16 साल लगे थे विकास में
दरअसल, निशांत यूएवी परियोजना दो दशक पूर्व वर्ष 1995 में शुरू की गई थी। इस परियोजना के पहले चरण में 90 करोड़ रुपए का निवेश हुआ। लगभग 16 साल बाद वर्ष 2011 में यूएवी का विकास करने वाली एजेंसी एडीई ने चार निशांत सेना को सौंपा था। उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार अब एडीई को डीआरडीओ ने एक पत्र भेजा है जिसमें कहा गया है कि ‘उपभोक्ता ने कहा है कि उसे अब और निशांत यूएवी प्रणाली की आवश्यकता नहीं है। इसलिए निशांत यूएवी परियोजना का दूसरा चरण बंद किया जाता है। अब इस परियोजना के लिए कोई फंड नहीं जारी किया जाएगा।
आरोप-प्रत्यारोप
हालांकि, निशांत यूएवी के दुर्घटनाग्रस्त होने को लेकर सेना और डीआरडीओ ने एक दूसरे को दोषी ठहराया। जहां डीआरडीओ ने कहा कि सेना ने निशांत का परिचालन सही ढंग से नहीं किया वहीं सेना ने तक नीकी विसंगति को इसका कारण बताया। निशांत के रिकवरी (लैंड करने के समय) में समस्या रही और आखिरी विमान जब दुर्घटनाग्रस्त हुआ तब डीआरडीओ का भी एक ऑपरेटर मौजूद था। सेना ने कहा कि निशांत की पैराशूट रिकवरी प्रणाली में खामी है जिसके कारण वह बार-बार दुर्घटना का शिकार हो रहा है।
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