मुंबई। टाटा संस के बोर्ड ने एक चौंकाने वाले घटनाक्रम में सोमवार को साइरस पी.मिस्त्री को कंपनी के अध्यक्ष पद से हटा दिया। रतन एन. टाटा को कंपनी का अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया है। कंपनी की ओर से जारी बयान के मुताबिक, यह फैसला सोमवार को यहां बोर्ड की एक बैठक के दौरान लिया गया। चार महीने के अंदर अगले अध्यक्ष का चयन करने के लिए एक कमेटी गठित की गई है। बयान के मुताबिक, टाटा संस के आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन ऑफ टाटा संस के मुताबिक कमेटी में रतन एन.टाटा, वेणु श्रीनिवासन, अमित चंद्रा, रोनेन सेन तथा लॉर्ड कुमार भट्टाचार्य शामिल हैं। कमेटी को चार महीने के अंदर अध्यक्ष का चयन अनिवार्य रूप से कर लेना है। कंपनी ने हालांकि अध्यक्ष को हटाने के कारणों के बारे में कुछ नहीं कहा है। साइरस को हटाने की घोषणा पर उद्योग जगत के लोगों ने कई तरह की प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैं। आरपीजी एंटरप्राइजेज के अध्यक्ष हर्ष गोयनका ने इस कदम को कॉरपोरेट तख्तापलट करार दिया। उन्होंने ट्वीट किया, कॉरपोरेट की दुनिया की ऐतिहासिक खबर। सबसे बड़े कॉरपोरेट तख्तापलट को बेहद सफाई से अंजाम दिया गया। आयरलैंड में जन्मे साइरस मिस्त्री (48) दिसंबर 2012 में टाटा संस के अध्यक्ष बने थे। वह पालोनजी मिस्त्री के सबसे छोटे बेटे हैं, जिनकी निर्माण कंपनी शापूरजी पालोनजी एंड कंपनी टाटा संस की सबसे बड़ी शेयरधारक है, जिसकी कंपनी में लगभग 18 फीसदी हिस्सेदारी है। दीर्घकालिक हितों को ध्यान में रखकर हटाया गया टाटा संस के एक प्रवक्ता के मुताबिक, मिस्त्री को कंपनी के दीर्घकालिक हितों को ध्यान में रखकर हटाया गया है। प्रवक्ता ने कहा, कंपनी के बोर्ड तथा प्रमुख शेयरधारकों ने मिलकर यह बुद्धिमानी भरा फैसला किया, जिसके बारे में उनका मानना है कि यह टाटा संस तथा टाटा समूह के दीर्घकालिक हितों के लिए उपयुक्त हो सकता है। अर्थशास्त्रियों ने ‘सबसे महत्वपूर्ण उद्योगपति’ करार दिया था प्रवक्ता ने कहा, संचालन के स्तर पर मुख्य कार्यकारी अधिकारियों (सीईओ) में कोई बदलाव नहीं होगा। हितों को लेकर किसी तरह का टकराव न हो, इसके लिए साल 2012 में टाटा संस में अध्यक्ष पद पर नियुक्ति से पहले उन्होंने शापूरजी पालोनजी के प्रबंध निदेशक पद से इस्तीफा दे दिया था। उनके पिता पलोनजी टाटा संस में पैसिव निवेशक रहे हैं, हालांकि साल 2006 तक वह बोर्ड में बैठे और सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने यह पद साइरस को दे दिया। मिस्त्री टाटा समूह के छठे अध्यक्ष हुए और नोरोजी सक्लात्वाला के बाद दूसरे ऐसे अध्यक्ष, जिनके नाम में टाटा नहीं था। अर्थशास्त्रियों ने एक समय में उन्हें भारत तथा ब्रिटेन का ‘सबसे महत्वपूर्ण उद्योगपति’ करार दिया था। जब पद संभाला, तक हाल बुरा था मिस्त्री ने रतन टाटा से अध्यक्ष पद की कमान ऐसे वक्त में ली थी, जब टाटा समूह की कई कंपनियों का हाल बुरा था और उनकी सबसे बड़ी चुनौती अंतर्राष्ट्रीय इस्पात कारोबार को तंगहाली से निकालना और अन्य कारोबारों को एकजुट रखना था। 100 अरब डॉलर की कंपनी में लगभग सात लाख कर्मी कार्यरत हैं। टाटा समूह के ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर पिछले महीने दिए गए एक साक्षात्कार में मिस्त्री ने कहा था कि समूह की कुछ कंपनियों के उच्च ऋण स्तर को व्यापार के विकास, संचालन से बढऩे वाली नकदी तथा जारी पूंजीगत परियोजनाओं के संदर्भ में देखना चाहिए, ताकि भविष्य में कंपनी का विकास हो। उन्होंने कहा, चूंकि समूह पहले से ही महत्वपूर्ण रूप से तरक्की करता रहा है, इसलिए कुल पूंजी भी बढ़ी है। उसी अनुपात में ऋण में भी इजाफा हुआ है। इस साल सितंबर में, टाटा स्टील को 30 जून को समाप्त हुई तिमाही में शुद्ध घाटा 10 गुना बढ़कर 3,183 करोड़ रुपये रहा, जबकि पिछले साल की इसी अवधि में कुल 317 करोड़ रुपये का शुद्ध नुकसान हुआ था। गोयनका ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, यह चौंकाने वाली खबर है। साइरस मिस्त्री को टा-टा। भारत के सबसे प्रतिष्ठित समूह में अनिश्चितता देश के लिए अच्छा संकेत नहीं है। साइरस को आखिर हुआ क्या है, जो खुद मिस्त्री हैं!