चूंकि शिविरों में कम जगह में अधिक लोग रह रहे हैं, इसलिए ये लोग कोरोना संक्रमण ( Coronavirus in india ) के लिहाज से भी अति संवेदनशील हैं।
हालांकि ये लोग कोरोना संक्रमण या कोई अन्य बीमारी होने की संभावना के साथ ही भर पेट भोजन के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं।
वैसे अभी गनीमत है कि शरणार्थियों के बीच कोई भी कोविड-19 पॉजिटिव नहीं पाया गया है। मगर इतना जरूर है कि यहां रह रहे अधिकतर परिवार विकट परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं।
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आठ साल पहले यहां आए लगभग 6,000 शरणार्थी अभी तक के सबसे खराब संकट का सामना कर रहे हैं। लॉकडाउन के कारण उन्हें कई परेशानियां उठानी पड़ रही हैं।
समाज के अन्य गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की तरह ही लॉकडाउन ने उनकी स्थिति व आम दिनचर्या को भी बिगाड़ दिया है।
शरणार्थियों के साथ कोरोना के प्रकोप के बीच सबसे खराब स्थिति यह है कि शिविरों में कई परिवारों को 10 गुणा 10 फीट के काफी छोटे तिरपाल में रहना पड़ रहा है।
दिहाड़ी मजदूरी व सब्जी बेचकर आजीविका कमाने वाले शरणार्थी अपने घरों तक ही सीमित होकर रह गए हैं, जिससे उनके साथ बड़ा आर्थिक संकट भी गहराया है।
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अपनी भूख को शांत करने के लिए इनके पास पैसे नहीं हैं। शरणार्थी पूरी तरह से गैर-सरकारी संगठनों और दान समूहों पर निर्भर हैं।
हैदराबाद के बालापुर और अन्य शिविरों में रह रहे लोगों के बीच डर साफ तौर पर दिखाई दे रहा है। अन्य झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों की तरह, सामाजिक भेद उनके लिए अव्यावहारिक है।
करीब 1400 शरणार्थी परिवारों के बीच राशन वितरित करने वाली एक स्वयंसेवी संस्था कॉन्फेडरेशन ऑफ वॉलंटरी एसोसिएशंस (कोवा) के निदेशक मजहर हुसैन ने कहा, 10 गुणा 10 या 10 गुणा 15 (वर्ग फुट) की झोपड़ियों में रहने वाले परिवारों के लिए भला क्या सामाजिक दूरी होगी।
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उन्होंने कहा, सिर्फ शरणार्थी ही नहीं, बल्कि चार से छह लोगों के किसी भी गरीब परिवार को अपना पूरा जीवन एक छोटे से कमरे में गुजारना पड़ता है।
यहां तक कि मध्यम वर्ग के परिवार भी सामाजिक दूरी का पालन नहीं कर सकते हैं। उनका मानना है कि शरणार्थियों के कोरोनावायरस से ग्रस्त होने की संभावना नहीं हैं, क्योंकि वे न तो विदेश यात्रा करते हैं और न ही विदेश से लौटे लोग उनसे मिलते हैं।
मगर एक एक अन्य सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा कि कुछ शरणार्थी तब्लीगी जमात के लिए काम करते हैं।
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तबलीगी जमात की हाल ही में दिल्ली में हुई बैठक में शामिल सैकड़ों लोगों को कोरोना संक्रमित पाया गया है। इसलिए इस लिहाज से इन लोगों के लिए यह बात खतरनाक साबित भी हो सकती है।
हालांकि शरणार्थी देश के भीतर भी यात्रा करने से बचते हैं, इसलिए उनमें से किसी के भी दिल्ली की बैठक में शामिल होने की संभावना कम ही है।
जम्मू एवं कश्मीर में 10,000 से अधिक रोहिंग्या रह रहे हैं। जम्मू में 1,500 पंजीकृत रोहिंग्या शरणार्थी परिवार हैं। उनका कहना है कि वे बेहतर आजीविका कमाने के लिए जम्मू आए हैं।
लेकिन वैश्विक महामारी के समय में जम्मू यह सुनिश्चित करने के लिए मदद कर रहा है कि समाज के लोगों की पीड़ाओं को कम किया जा सके।
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