किट में सैनिटाइजर, मास्क और हैंड ग्लोव्स शामिल हैं। देश में इस तरह की सेवाएं दे रहीं प्राइवेट कंपनियों में से प्रमुख हैं जीवीके ईएमआरआई।
यह कंपनी देश में ‘102’ और ‘108’ एंबुलेंस सेवा देती है। हालांकि, अब ‘108’ एंबुलेंस सेवा केट्स एंबुलेंस सेवा को ट्रांसफर की जा रही है।
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आश्चर्य की बात यह है कि ‘कोरोना वॉरियर्स’ की भूमिका निभाने वाले इन एंबुलेंस में सेवा दे रहे कर्मचारी ही जरूरी सुरक्षा उपकरण और सुविधाओं से महरूम हैं। हर रोज इन एंबुलेंस के जरिए कोरोना से संक्रमित या संदिग्ध लोगों को अस्पताल ले जाया जाता है।
दिल्ली के लोकनायक जय प्रकाश अस्पताल में तैनात 108 एंबुलेंस सेवा में कार्यरत मीना ने कहा कि पीपीई किट सिर्फ पैरामेडिकल स्टाफ को मुहैया कराया जाता है।
न तो ये किट हम जैसे सहायक को दिया जाता है और न ही पायलट को। हम लोगों को सैनिटाइजर, मास्क और हैंड ग्लोव्स भी उपलब्ध नहीं कराया जाता है।
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उन्होंने आगे कहा कि ये हालत तब है कि जब हम लोग हर दिन कम से कम 10 मरीज को महरौली आइसोलेशन वार्ड में शिफ्ट करने एलएनजेपी से ले जाते हैं।
एंबुलेंस सेवा में काम कर रहे इन कर्मचारियों की दुश्वारिया यहीं खत्म नहीं होतीं। इनका आरोप है कि इन लोगों को दो महीने पर वेतन दिया जाता है और वो भी कभी आधी तो कभी एक तिहाई।
इस पर केट्स एंबुलेंस एसोसिएशन के अध्यक्ष नरेंद्र लकड़ा ने कहा कि ये कंपनी कारोबार कर रही है, जबकि एंबुलेंस सेवा ‘नो प्रॉफिट, नो लॉस’ के सिद्धांत पर चलती है।
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वास्तविकता में एंबुलेंस में काम कर रहे लोगों को जरूरी सुरक्षात्मक किट नहीं मिल रहे हैं। तनख्वाह भी समय पर नहीं मिल रही है।
यूनियन ने इन्हीं सबको लेकर जांच कमेटी बिठाई है, जो अपनी रिपोर्ट दिल्ली सरकार को देगी।”
गौरतलब है कि दिल्ली की जीवीके ईएमआरआई और केट्स की लगभग 200 एंबुलेंस हैं। इनमें से सिर्फ 100 एंबुलेंस को कोरोना मरीजों के परिवहन में लगाया गया है ।
50 से ज्यादा एंबुलेंस खराब हैं। बाकी स्टाफ की कमी की वजह से नहीं चल रही हैं। फिलहाल अभी 1500 कर्मचारी इस सेवा में हैं।
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