क्या है भारत में कोरोना वायरस से कम मृत्यु दर की हकीकत
दुनिया भर के विशेषज्ञों-पेशवरों ने इस बारे में दी है अपनी राय।
क्या बड़ी संख्या में मौतों के आंकड़े छिपाना संभव है, पर दी जानकारी।
भारत में होने वाली सालाना मौतों में केवल 22 फीसदी ही चिक्तिसीय रूप से प्रमाणित।
नई दिल्ली। दुनिया भर में कहर बरपाने वाला कोरोना वायरस भारत में काफी हद तक नियंत्रण में बना हुआ है। हालांकि भारत में COVID-19 से होने वाली कम मौतें कई सवाल भी खड़े करती हैं। जिस वक्त दुनिया के सबसे शक्तिशाली मुल्क अमरीका में कोरोना वायरस से रोज 1000 से ऊपर लोगों की जानें जा रही हैं, गनीमत है कि भारत में अभी यह संख्या 1000 से नीचे ही है। लेकिन क्या भारत में वाकई कोरोना वायरस से होने वाली मौतों की संख्या इतनी ही है या फिर इसकी कुछ और हकीकत है, यह जानना बहुत जरूरी है।
मुख्यमंत्रियों की बैठक में बोले पीएम मोदी- इन राज्यों में जारी रहेगा लॉकडाउन #Lockdown दअरसल अगर दुनिया के प्रमुख मीडिया घरानों की रिपोर्टों को देखें तो भारत को लेकर कोई अच्छी राय रखता है और कोई हैरान करने वाली। कई मीडिया COVID-19 से भारत की निम्न मृत्यु दर के पीछे किसी रहस्य के बारे में बताते हुए कहते हैं कि देश कोरोनो वायरस ट्रेंड को कम कर रहा है।
भारत की मौजूदा स्थिति 30 जनवरी को देश में आए पहले कोरोना वायरस पॉजिटिव केस के करीब तीन माह बाद भारत में कोरोना केस की कुल संख्या 29,435 पहुंच गई है और 934 लोगों की मौत हो चुकी है। दुनिया के दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले देश के लिहाज से वैश्विक मीडिया को इन आंकड़ों में कुछ संदेह नजर आता है।
क्या है मृत्यु दर ऐसे वक्त में मृत्यु दर को समझने का एक आसान तरीका यह है कि कुल मौतों की संख्या दोगुना होने में कितने दिन लगते हैं। मंगलवार को केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन ने बताया कि भारत में यह (दोगुना होने की दर) फिलहाल 8.7 दिनों की है। जबकि पिछले सात दिनों में यह 10.2 थी। बीते तीन दिनों में यह करीब 10.9 पर पहुंच गई थी।
मुख्यमंत्रियों के साथ पीएम मोदी की बैठक की 10 मुख्य बातें उन्होंने आगे बताया कि पिछले सात दिनों में देश के 80 जिलों में एक भी नया केस सामने नहीं आया है। जबकि 47 जिलों में बीते 14 दिनों में और 39 जिलों में बीते 21 दिनों से कोई नया केस रिपोर्ट नहीं किया गया है। 17 जिले ऐसे भी है जिनमें बीते 28 दिनों से कोरोना वायरस का कोई मामला सामने नहीं आया है।
लॉकडाउन का प्रभाव बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक विशेषज्ञों का कहना है कि यह अच्छी खबर है क्योंकि कोरोना महामारी के एक ही चरण में न्यूयॉर्क में मौतों के दोगुना होने की दर केवल दो या तीन दिन थी। कई स्वास्थ्य पेशेवरों और डॉक्टरों का कहना है कि भारत में एक महीने से अधिक समय तक चलने वाले लॉकडाउन के चलते संक्रमण और मौतें रुकी हैं।
युवा आबादी भी एक वजह? मेडिकल जर्नल लैंसेट के मुताबिक लॉकडाउन पहले से ही महामारी वक्र को सपाट करने का मनचाहा प्रभाव दे रहा है। जबकि अन्य लोगों का मानना है कि भारत की आबादी मुख्य रूप से युवा है, जो मृत्यु दर को कम रखने में मदद कर रही है क्योंकि बुजुर्गों में संक्रमण से मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।
अप्रमाणित दावे इस बीच कई लोग भारत में कमजोर क्षमता वाले वायरस के कम घातक होने और यहां के गर्म मौसम के चलते कम संक्रमण होने की संभावना जताते हैं। हालांकि इन दोनों ही दावों के पीछे कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है। जबकि हकीकत तो यह है कि भारत में COVID-19 के गंभीर मरीजों का इलाज करने वाले डॉक्टरों ने इस वायरस को उतना ही घातक करार दिया है, जितना यह दुनिया में कहीं और बताया गया है।
क्या है रहस्य तो क्या भारत द्वारा घोषित कोरोना वायरस से होने वाली मौतों के आंकड़े में कुछ खेेल है? इस सवाल के जवाब की सच्चाई यह है कि किसी को भी इस बारे में कुछ नहीं पता है। हाल ही में भारतीय-अमरीकी चिकित्सक और ऑन्कोलॉजिस्ट सिद्धार्थ मुखर्जी ने पत्रकार बरखा दत्त से कहा था कि यह एक रहस्य है और वह मानते हैं कि रहस्य का मुख्य हिस्सा यह है कि भारत में पर्याप्त टेस्टिंग नहीं हो रही है। अगर ज्यादा टेस्टिंग की जाती तो इसका जवाब पता होता।
मौतों की गिनती हमेशा से चैलेंज भारत की महात्वाकांक्षी द मिलियन डेथ स्टडी करने वाले यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो के प्रभात झा के मुताबिक दरअसल हकीकत तो यह है कि मौतों की गिनती करना भारत में हमेशा ही एक गूढ़ विषय रहा है। भारत में हर साल लगभग एक करोड़ लोग मरते हैं। सरकार के स्वयं के प्रवेश के अनुसार, भारत में होने वाली केवल 22 फीसदी मौतें ही चिकित्सकीय रूप से प्रमाणित हैं।
बड़ा सवाल तो ऐसे में सवाल उठता है कि COVID-19 से होने वाली मौतों को कैसे परिभाषित किया जाए। कुछ भारतीय डॉक्टरों ने बताया है कि कई लोग COVID-19 लक्षणों की जांच या “इलाज” किए बिना ही इस वायरस से मर रहे थे। और फिर यह भी मानना पड़ेगा कि भारत में डॉक्टर अक्सर ही मौत का कारण गलत बताते हैं।
अंडर रिपोर्टिंग बेल्जियम के एरेस्मे यूनिवर्सिटी अस्पताल में गहन चिकित्सा के प्रोफेसर जीन-लुई विंसेंट ने ने बीबीसी को बताया कि भारत सहित कई देशों म कोरोना वायरस रस से होने वाली मौतों की अंडर रिपोर्टिंग की गई थी।
उन्होंने कहा, “जब आपको बताया जाता है कि मृत्यु से पहले व्यक्ति को बुखार और सांस की समस्याएं थीं, तो आपको कोरोना वायरस का संदेह हो सकता है। लेकिन यह कुछ और भी हो सकता है। मौत अक्सर एक संक्रमण के बाद होती है, कभी-कभी यह संक्रमण मामूली होता है। यदि आप परीक्षण नहीं करते हैं, तो आप कई मौतें की वजह COVID-19 को बता सकते हैं या इसकी भूमिका को पूरी तरह से नकार सकते हैं।”
सरकारों की भूमिका डॉ. विंसेंट कहते हैं, “COVID-19 के कारण होने वाली मौतों की संख्या हासिल करना, इस बीमारी की गंभीरता का मूल्यांकन करने के लिए बहुत सार्थक नहीं है। अस्पताल में भर्ती होने की संख्या इसके लिए कुछ बेहतर है, लेकिन इसमें अस्पताल के बाहर होने वाली सभी मौतें शामिल नहीं होती हैं।”
मौत का पता लगाना विश्वसनीय इस संबंध में डॉ. प्रभात झा कहते हैं कि कोई भी जानबूझकर मौतों को छिपाने की कोशिश नहीं कर रहा है। आप सामूहिक मौतें नहीं छिपा सकते हैं। केसेज की तुलना में मौतों पर नज़र रखना है कहीं अधिक विश्वसनीय है, क्योंकि केस प्रमुख रूप से टेस्टिंग पर आधारित होते हैं। लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि सभी मौतें या एक अच्छी संख्या में रैंडम सैंपलिंग या मौतों के आंकड़े दर्ज किए जाएं।
एक विशेषज्ञ के मुताबिक हो सकता है कि भारत कुछ मौतों को रिकॉर्ड नहीं कर पा रहा हो या फिर COVID-19 के हर मरीज को सही से डायग्नोस नहीं कर पा रहा हो। लेकिन फिर भी यहां होने वाली मौतें बेशक कम हैं। यह कहना जल्दबाजी होगी कि देश ने इस ट्रेंड को कम किया है।