केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा कोरोना अपडेट को लेकर आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में डॉ. पॉल ने कहा, “बचपन की COVID-19 बीमारी पर हमारा ध्यान केंद्रित है। बच्चों की आबादी आमतौर पर स्पर्शोन्मुख (बिना लक्षणों वाली बीमारी) होती है। उन्हें अक्सर संक्रमण होता है लेकिन उनके लक्षण न्यूनतम या शून्य होते हैं। बच्चों में संक्रमण ने गंभीर रूप नहीं लिया है।”
बच्चों के बीच COVID-19 के बारे में बात करते हुए, नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) ने यह भी चेतावनी दी कि अगर बच्चों के बीच वायरस अपने व्यवहार को बदलता है, तो हालात बदतर हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि भारत ऐसे विपरीत हालात के लिए तैयारियों पर जोर दे रहा है।
उन्होंने कहा, “अगर COVID-19 वायरस अपनी प्रकृति बदलता है, तो बच्चों पर COVID-19 का प्रभाव बढ़ सकता है। हालांकि, बच्चों को हल्का COVID-19 हो सकता है। लेकिन फिर भी, अगर 2-3 प्रतिशत बच्चों को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत होती है, तो भी हम उसके लिए तैयारी कर रहे हैं।”
बच्चों में कोरोना वायरस संक्रमण की जानकारी कैसे होती है, इस बारे में बताते हुए डॉ पॉल ने कहा, “बच्चों में COVID-19 दो तरह से पाया गया है। पहला, उनमें निमोनिया जैसे लक्षण पाए गए हैं। दूसरे में, जो बच्चे हाल ही में COVID-19 से उबरे हैं, उनमें मल्टी इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम के कुछ मामले पाए गए।”
गौरतलब है कि पिछले सप्ताह इंडियन एसोसिएशन ऑफ पीडियाट्रिशियंस (कर्नाटक चैप्टर) में संक्रामक रोगों के अध्यक्ष डॉ. रविशंकर ने इस संबंध में जानकारी दी थी। उन्होंने बताया था कि वॉलेंटरी सीरम सर्वे के रूप में कर्नाटक के कुछ डॉक्टर्स अस्पताल पहुंचने वाले बच्चों की जांच करने के साथ यह भी टेस्ट कर रहे हैं कि क्या उनमें कोरोना वायरस की एंटीबॉडी हैं या नहीं। इसमें पता चला कि30 फीसदी बच्चे पहले ही कोरोना वायरस से संक्रमित होकर ठीक हो चुके हैं।
उन्होंने बताया कि तीसरी लहर में कोरोना वायरस खुद बच्चों को गंभीर रूप से प्रभावित नहीं करेगा, बल्कि अन्य गंभीर समस्याएं जैसे MISC (मल्टीसिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम ड्यू टू कोविड) बड़ा खतरा बन सकता है।
डॉ. रविशंकर ने कहा, “यह एक नई परेशानी है जो कोविड-19 से ही निकला है। आमतौर पर बच्चे कोरोना वायरस से संक्रमित होने के पांच से छह सप्ताह बाद इससे प्रभावित होते हैं। वयस्कों की तरह बच्चों का इम्यूनिटी स्तर तेजी से नहीं बढ़ता है। इसलिए 90 फीसदी मामलों में दिल को प्रभावित करने वाली यह परेशानी बेहद खतरनाक तेजी से काफी ब़ड़ा खतरा बन सकती है।”
उन्होंने आगे बताया, “छोटे बच्चों के फेफड़ों में पर्याप्त रिसेप्टर्स नहीं होते हैं, इसलिए कोविड से होने वाले गंभीर नुकसान का खतरा कम होता है। MISC के साथ सबसे बड़ा जोखिम इसकी तेज रफ्तार को लेकर है जो बेहद तेजी से हालत बिगाड़ देती है। शुरुआती लक्षणों में बुखार और पूरे शरीर पर चकत्ते होते हैं। इन चकत्तों में खुजली नहीं होती, जो इस बात की ओर ईशारा करती है कि इन चकत्तों की वजह एलर्जी नहीं है।”
डॉ. रविशंकर ने कहा, “हो सकता है कि बच्चे को एक माह पहले सर्दी-जुकाम हुआ हो या फिर उसे घर में या बाहर कोरोना संक्रमण हुआ हो। दोनों ही मामलों में जब बुखार और चकत्तों के साथ पल्स और ब्लड प्रेशर तेजी से गिरने लगे, बच्चे को तुरंत नजदीकी अस्पताल लेकर पहुंचे। शुरुआती जांच में CRP, EFR, कंपलीट हीमोग्राम, प्लेटलेट काउंट और कोविड एंटीबॉडी टेस्टिंग शामिल होनी चाहिए।”
उन्होंने आगे कहा, “ऐसे मामलों में कार्डिएक अरेस्ट की आशंका होती है, इसलिए बच्चे को आईसीयू में शिफ्ट करने के साथ ही लगातार निगरानी करनी चाहिुए। सबकुछ इतना तेजी से होता है कि बच्चा 24 से 48 घंटों के भीतर नाजुक (क्रिटिकल) हालत में पहुंच जाता है। इसका सबसे बड़ा बचाव केवल शुरुआती जांच है और लोगों को इन लक्षणों के बारे में जागरूक करना चाहिए ताकि देरी से अस्पताल पहुंचाने के चलते होने वाली मौतों को रोका जा सके।”