अभी-अभी महाराष्ट्र और दिल्ली सरकार ने कर दिया लॉकडाउन बढ़ाने को लेकर सबसे बड़ा ऐलान यह रिपोर्ट यूनाइटेड नेशंस ( United Nations ) कॉलेज के एक UNU-WIDER द्वारा प्रकाशित की गई है। इसमें कई परिदृश्यों के माध्यम से विश्व के वित्तीय संस्थानों की विभिन्न गरीबी रेखाओं को ध्यान में रखा गया है। इसमें प्रतिदिन 1.90 डॉलर या उससे कम पर अत्यधिक गरीबी से प्रतिदिन 5.50 डॉलर से कम यानी उच्चतर गरीबी के रूप में परिभाषित व्यक्तियों पर विचार किया गया है।
इसमें सबसे खराब परिदृश्य के अंतर्गत प्रतिव्यक्ति आय या खपत में 20 फीसदी कमी के चलते अत्यधिक गरीबी में रहने वालों की संख्या 112 करोड़ हो सकती है। आय या खपत में इतनी ही कमी ऊपरी-मध्यम आय वाले देशों में 5.50 डॉलर की सीमा तक रहने वाले लोगों में भी देखने को मिल सकती है। यानी 370 करोड़ से अधिक लोग या दुनिया की आधी से अधिक आबादी इस गरीबी रेखा से नीचे रहते दिख सकती है।
रिपोर्ट के लेखकों में से एक एंडी समनर ने कहा, “जब तक सरकारें जल्द से जल्द खुद से ज्यादा प्रयास नहीं करती हैं और दैनिक आय में होने वाले नुकसान की भरपाई नहीं करती, दुनिया के सबसे गरीब लोगों के लिए हालात गंभीर है। नतीजा यह है कि गरीबी में लाई गई वैश्विक कमी 20-30 वर्ष पीछे जा सकती है और गरीबी को समाप्त करने का संयुक्त राष्ट्र का लक्ष्य एक सपने की तरह देखा जा सकता है।”
लॉकडाउन पर बड़ा खुलासा, पीएम मोदी का यह फैसला पलट सकता है बिहार चुनाव का पासा किंग्स कॉलेज लंदन और ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि गरीबी भौगोलिक वितरण में बदल जाएगी। क्षेत्र के हिसाब से अत्यधिक गरीबी की आशंका वाले लोगों की सबसे बड़ी संख्या दक्षिण एशिया ( South Asia ) में देखने की उम्मीद की जा रही थी। इसमें मुख्य रूप से बड़ी आबादी वाला भारत प्रमुख था। इसके बाद उप-सहारा अफ्रीका था जहां से लगभग एक तिहाई बढ़ोतरी होगी।
सोमवार को विश्व बैंक ने कहा था कि आशंका है कि यह महामारी 7 करोड़ से 10 करोड़ लोगों को अत्यधिक गरीबी में धकेल देगी। गौरतलब है कि कोरोना वायरस महामारी पर काबू पाने के लिए दुनिया के तमाम देशों में अभूतपूर्व लॉकडाउन देखा गया। इसके चलते उद्योग-धंधों के बंद होने के साथ ही देशों की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। इससे रातोंरात लोग बेरोजगार हो गए।