अमेरिका में मिशिगन विश्वविद्यालय ( University of Michigan in America ) के एक भारतीय मूल की शोधकर्ता ने यह दावा किया है।
शोधकर्ता का मानना है कि कोविड-19 की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है, क्योंकि भारत में वायरस ( Coronavirus in Delhi ) के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए किसी व्यवस्थित योजना का एक समान कार्यान्वयन नहीं हो सका है।
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मिशिगन विश्वविद्यालय में बायोस्टैटिक्स की प्रोफेसर एवं महामारी विशेषज्ञ भ्रमर मुखर्जी ने आईएएनएस के साथ एक साक्षात्कार में यह दावा किया है। उन्होंने कहा कि देश को वायरस के कर्व (वक्र) को तोड़ने के लिए इस मोड़ पर और अधिक तेजी से परीक्षण की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, भारत ने अपनी आबादी का लगभग 0.5 प्रतिशत परीक्षण किया है, जबकि दुनिया भर में औसत स्तर लगभग चार प्रतिशत है। हम इस स्तर तक बहुत जल्दी नहीं पहुंचने जा रहे हैं; 60 लाख परीक्षणों से लेकर 5.4 करोड़ परीक्षणों तक एक लंबा समय लगेगा। इसलिए हमें आरटी-पीसीआर परीक्षण के विकल्पों की आवश्यकता है।
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मुखर्जी ने कहा, हमें उच्च तकनीक या महंगी रणनीतियों के अभाव में लक्षणों की निगरानी, तापमान की जांच, ऑक्सीजन जांच, लक्षण बनाए रखने और संक्रमण के संपर्कों का पता लगाने की आवश्यकता है। हमें यह पता लगाने के लिए एक बड़ी आबादी-आधारित सीरो-सर्वेक्षण की आवश्यकता है कि वास्तव में लोगों का कौन सा खंड या अंश संक्रमित हो गया है। उन्होंने कहा कि भारत में नौ सप्ताह के सख्त राष्ट्रव्यापी बंद के बावजूद, देश अब कोरोनावायरस मामले की संख्या में दुनिया का चौथा देश बन चुका है। उन्होंने कहा, अन्य देशों में लॉकडाउन के पैटर्न से पता चलता है कि अधिकतम तीन-चार सप्ताह के भीतर नए सक्रिय (एक्टिव) मामलों में गिरावट आई। दुर्भाग्य से भारत में राष्ट्रीय वक्र इस तरह का नहीं रहा।
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देश में रविवार तक कुल 4,10,461 कोरोनावायरस मामले हो चुके हैं और अब लगभग 15,000 नए मामले प्रतिदिन सामने आ रहे हैं, जो कि देश में संक्रमण का उच्चतम स्तर है। मुखर्जी के अनुसार, अधिक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या हमने लॉकडाउन अवधि का इस्तेमाल अपने परीक्षण और इलाज के बुनियादी ढांचे को स्थापित करने में किया है? उन्होंने आईएएनएस को बताया, जब आप फिर से खोलेंगे तो उछाल (संक्रमण वृद्धि) देखने को मिलेगा। मुझे नहीं लगता कि भारत न्यूजीलैंड की तरह बीमारी को मिटा सकता है। इसलिए हमें मामलों की संख्या का प्रबंधन करने के लिए रणनीतियों की आवश्यकता है।
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हालांकि मुखर्जी भारत की ओर से संक्रमण को नियंत्रित करने की दिशा में सकारात्मक भी हैं। उन्होंने कहा कि अगर मुंबई में धरावी झुग्गी बस्ती में कोरोना के चेन को तोड़ा जा सकता है, जहां सामाजिक दूरी अपनाए रखना कितना कठिन है, तब वह यकीन के साथ कह सकती हूं कि यह सफलता कहीं भी हासिल की जा सकती है। भारतीय मूल की अमेरिकी शोधकर्ता ने देश में पीपीई किट, बेड, ऑक्सीजन, वेंटिलेटर और कोरोना के उपचार के लिए तमाम सुविधाओं की पर्याप्त आवश्यकता पर भी जोर दिया।