काम और वेतन में भी असमानता-
कामकाजी महिलाएं काम व वेतन के लिए लड़ाई लड़ रही हैं। उन्हें पुरुषों की अपेक्षा कमतर आंका जा रहा है। ज्यादातर घरेलू जिम्मेदारियों का बोझ उन पर है। यह खुलासा लिंक्डइन अपॉच्र्युनिटी इंडेक्स, 2021 की सर्वे रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, एशिया-प्रशांत देशों में 22 प्रतिशत महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अपेक्षित महत्त्व नहीं दिया जाता।
मैनचेस्टर विश्वविद्यालय ने बढ़ाए कदम-
ब्रिटेन की मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी ने लैंगिक असमानता के शब्दों पर रोक लगाने की पहल की है। बोलचाल व आधिकारिक कामों में मैनपावर की जगह वर्कफोर्स, मैनकाइंड की जगह ह्यूमनकाइंड और मैनमेड की जगह आर्टिफिशियल जैसे शब्द इस्तेमाल हों, ताकि लैंगिक भेद न झलके।
वैश्विक लैंगिक भेद अनुपात रिपोर्ट 2021-
वरिष्ठ व प्रबंधक पदों पर महिलाओं की भागीदारी कम ही रही है। इन पदों पर 14.6 प्रतिशत ही महिलाएं हैं। सिर्फ 8.9 प्रतिशत कंपनियां ही हैं, जहां शीर्ष प्रबंधक पदों पर महिलाएं हैं।
लैंगिक साक्षरता के मामले में, 17.6 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में एक तिहाई महिलाएं (34.2 फीसदी) निरक्षर हैं।
आर्थिक भागीदारी और अवसर की सूची में भी गिरावट आई है। इस क्षेत्र में लैंगिक भेद अनुपात ३ फीसदी और बढ़कर 32.6 प्रतिशत पर पहुंच गया है।
महिला श्रम भागीदारी दर 24.8 प्रतिशत से घटकर 22.3 प्रतिशत रह गई है।
प्रोफेशनल व टेक्निकल फील्ड में भी महिलाओं की भूमिका घटकर 29.2 प्रतिशत रह गई है।
राजनीतिक सशक्तीकरण सबइंडेक्स में महिला मंत्रियों की संख्या में 13.5 प्रतिशत की कमी आई है।
दुनियाभर में 4 में से एक महिला ने जीवन में घरेलू हिंसा झेली है।
महिला रोजगार पर भी भारी कोरोना: अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुमान के मुताबिक कोरोना के कारण काम करने वाली कुल महिलाओं में से 5 प्रतिशत को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी। पुरुषों में रोजगार गंवाने वालों का प्रतिशत 3.9 था।