उन पर आरोप है कि वर्ष 1992 से 1995 के बीच उनके चाईबासा उपायुक्त पद पर रहने के दौरान पशुपालन विभाग में अत्याधिक अवैध निकासी हो रही थी, परंतु वे जिला पशुपालन अधिकारी बीएन शर्मा और एक आपूर्तिकर्त्ता की बात में आकर यह सब नजरअंदाज करते रहे। इतना ही नहीं उन्होंने एक आपूर्तिकर्त्ता से एक लैपटॉप भी लिया था। अदालत ने सजल को भादवि की धारा 120 बी आपराधिक षड़यंत्र रचने, धारा 420 धोखाधड़ी करने, धारा 409 सरकारी राशि का गबन करने, 467 महत्वपूर्ण दस्तावेजों में जालसाली करने, धारा 468, 471 और भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 13(2), आर डब्ल्यू 13(1) (डी) सरकारी पद का दुरूपयोग करने के मामले में दोषी करार दिया है।
हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था सीबीआई
इस मामले में मूल अभिलेख का निष्पादन अक्टूबर 2013 में हुआ था। इसके निष्पादन के पूर्व झारखंड उच्च न्यायालय ने सजल चक्रवर्ती के आरोप को निरस्त कर दिया था। सीबीआई ने हाईकोर्ट के आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की याचिका स्वीकार करते हुए सजल के खिलाफ पुनः सुनवाई का आदेश दिया था। इसी साल 8 मई 2017 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इस मामले में स्पीडी ट्रायल शुरू हुआ था और 30 मई 2017 को सजल ने आत्मसमर्पण किया। इसी दौरान सजल ने एक-एक लाख रुपये का बेल बांड भरा। अदालत ने उन्हें जमानत दी थी।