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CAA Dispute: इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ योगी सरकार पहुंची सुप्रीम कोर्ट, सुनवाई आज

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निजता के अधिकार का हनन माना
हाईकोर्ट के पाेस्टराें काे हटाने का दिया था आदेश
आदेश के खिलाफ यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया

Mar 12, 2020 / 10:26 am

Dhirendra

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नई दिल्ली। नागरकिता संशोधन कानून ( CAA ) के खिलाफ लखनऊ में हुई हिंसा का पोस्टर चैराहों पर लगाने का मामला सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) पहुंच गया है। योगी सरकार ( Yogi Government ) ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर तत्काल प्रभाव से पोस्टर हटाने को लेकर हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी है। प्रदेश सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की अवकाशकालीन पीठ ( Holiday bench ) इस मामले की सुनवाई करेगी।
यह पहला मौका है जब सुप्रीम कोर्ट में होली की एक सप्ताह की छुट्टियों को दौरान भी अवकाशकालीन पीठ बैठ रही है। बता दें कि अवकाशकालीन पीठ केवल गर्मी की छुट्टियों के दौरान ही बैठती है।
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गुरुवार को न्यायमूर्ति यूयू ललित और अनिरुद्ध बोस की अवकाश कालीन पीठ उत्तर प्रदेश सरकार की अर्जेंट याचिका ( Urgent writ ) पर सुनवाई करेगी। उत्तर प्रदेश के एडवोकेट जनरल राघवेन्द्र सिंह देर रात मीडिया को बताया कि प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की है जिस पर गुरुवार को सुनवाई होनी है।
हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि पोस्टर में नाम और फोटो छापने को हाईकोर्ट द्वारा निजता के अधिकार का हनन बताया जाना ठीक नहीं है क्योंकि यह मामला निजता के अधिकार के तहत नहीं आता। सिंह ने कहा कि जो चीजें पहले से सार्वजनिक हैं उन पर निजता का अधिकार ( Write to Privacy ) नहीं लागू होता। इस मामले में पहले से सारी चीजें सार्वजनिक हैं। दूसरा आधार अपील में मामले को जनहित याचिका बनाए जाने को लेकर है।
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एडवोकेट जनरल राघवेन्द्र सिंह ( Avocate General RaghvendraSingh ) ने बताया कि यह मामला जनहित याचिका ( Public Petition ) का नहीं माना जा सकता क्योंकि जनहित याचिका की अवधारणा उन लोगों के लिए लाई गई है जो किसी कारणवश कोर्ट आने में असमर्थ हैं उनकी ओर से जनहित याचिका ( PIL ) दाखिल की जा सकती है। या फिर जिन मामलों में आबादी का बड़ा हिस्सा प्रभावित हो रहा हो जैसे पर्यावरण संरक्षण आदि मामलों में जनहित याचिका हो सकती है लेकिन मौजूदा मामला ऐसा नहीं है।
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उन्होंने बताया कि मौजूदा मामले में प्रभावित लोग कोर्ट जा सकते हैं और रिकवरी नोटिस के खिलाफ कुछ लोग कोर्ट गए भी हैं ऐसे में इस मामले को जनहित याचिका के तहत नहीं सुना जाना चाहिए।
यह मामला पिछले साल दिसंबर महीने में लखनऊ में सीएए विरोधी प्रदर्शनों ( CAA Protest ) के दौरान हुई हिंसा में कथित रूप से शामिल रहे 57 लोगों के नाम और पते के साथ शहर के सभी प्रमुख चैराहों पर कुल 100 होर्डिग्स लगाए गए हैं। ये सभी लोग राज्य की राजधानी लखनऊ के हसनगंज, हजरतगंज, कैसरबाग और ठाकुरगंज थाना क्षेत्र के हैं। प्रशासन ने पहले ही 1.55 करोड़ रुपए की सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए इन सभी लोगों को वसूली के लिए नोटिस जारी किया है।
बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ( Allahabad High Court ) ने गत 9 मार्च को उत्तर प्रदेश सरकार को तत्काल प्रभाव से पोस्टर हटाने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट ने आदेश में कहा था कि प्रदेश सरकार को ऐसे पोस्टर लगाने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। हाईकोर्ट ने पोस्टर लगाने को निजता के अधिकार का भी हनन कहा था।

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