इंस्टीट्यूट के मुताबिक डार्क नेट पर कोरोना वायरस से ठीक हो चुके मरीजों का खून की खरीद-फरोख्त हो रही है। दौलतमंद लोग कोरोना वायरस से बचने के लिए इसे खरीदने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। साइबर अपराधी इस बात का फायदा उठा रहे हैं।
दुनियाभर के साइबर अपराधियों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला इंटरनेट का वह स्याह हिस्सा डार्क नेट कहलाता है, जिस पर कोई भी यूजर या गूगल भी यों ही नहीं पहुंच सकता। यहां अवैध चीजों की जमकर बिक्री होती है। कोरोना वायरस जैसी महामारी के वक्त में लोग इससे बचने के लिए उपलब्ध विकल्प तलाश रहे हैं।
इसमे कोरोना वायरस के संक्रमण से स्वस्थ हो चुके व्यक्ति का खून काफी ज्यादा डिमांड में है। डार्क नेट पर इसकी कीमत करीब 10 लाख रुपये प्रति लीटर रखी गई है। यह खून 25 मिलीलीटर से लेकर 1 लीटर तक की मात्रा में बेचा जा रहा है।
Passive Vaccine के नाम से प्रमोट किए जा रहे इस खून को साइबर क्रिमिनल्स अवैध ढंग से खरीदकर डार्क नेट पर बेच रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के अपराधशास्त्र संस्थान द्वारा किए गए इस खुलासे के बाद वहां के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय ने इस पर शोध भी किया।
इस शोध का नेतृत्व करने वाली रॉड ब्रॉडहर्स्ट के मुताबिक फिलहाल इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिला है कि प्लाज्मा थेरेपी से किसी भी व्यक्ति में कोराना संक्रमण का खतरा कम हो जाएगा। उन्होंने कहा कि Passive Vaccine उसे कहते है, जब संक्रमित व्यक्ति के स्वस्थ्य हो जाने के बाद उसके शरीर से रक्त का प्लाज्मा लेकर उस व्यक्ति के शरीर में डाला जाता है, जो इस संक्रमण से बचा हुआ है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक प्लाज्मा थेरेपी में खून का इस्तेमाल किया जाता है। इसकी वजह यह होती है कि किसी भी वायरस के शरीर पर हमला करने पर शरीर का प्रतिरोधी तंत्र ( Immune System ) उससे लड़ता है और इस दौरान उस वायरस के खिलाफ एक विशेष प्रकार की एंडीबॉडी विकसित करता है।
एंटीबॉडी एक प्रकार की प्रोटीन है और शरीर से इसका संक्रमण खत्म होने के बाद भी भविष्य में उससे निपटने के लिए मौजूद रहती है। ताकि दोबारा उस वायरस के शरीर पर हुए हमले को रोका जा सके और शरीर की रक्षा की जा सके।
कोरोना वायरस के मामले में भी वैज्ञानिकों की यही राय थी कि एक बार संक्रमित हो जाने के बाद मरीज पर दोबारा यह असरदार नहीं होगा। हालांकि इसे लेकर अभी तक कोई पुख्ता प्रमाण सामने नहीं आया है।