दादर रेलवे स्टेशन पर बेचते थे फूल
अन्ना हजारे की घर की आर्थिक स्थिति सहीं नहीं होने के कारण मुंबई के दादर रेलवे स्टेशन के बार फूल बचने काम करते थे। इसके बाद साल 1963 में अन्ना ने भारतीय सेना में भर्ती हुए। उस समय भारत और चीन का युद्ध चल रहा था। जिसमें भारतीय सेना को हार का सामना करना पड़ा था। तब सरकार ने लोगों से भारतीय सेना में शामिल होने की अपील की थी। भारतीय सेना में करीब 15 साल अपनी सेवाएं देकर उन्होंने वॉलियंटरी रिटायरमेंट ले ली थी।
गांव में पानी और बिजली की किल्लत को किया दूर
सेना से रिटायर होने के बाद अन्ना अपने पैतृक गांव के पास ही रालेगांव सिद्धि में रहने लगे। गांव काफी गरीब था और वहां पर ना तो पानी था और ना ही बिजली। गर्मी के समय में रालेगांव में पानी की भारी किल्लत हो जाती थी। अन्ना ने बदलाव का जिम्मा लिया। वे गड्ढे खोदकर बारिश का पानी जमा करने लगे। गांव के युवाओं ने उनका साथ दिया। पानी बचाने के साथ पेड़ लगाने को लेकर कई काम करने लगे। गांव में सौर ऊर्जा और गोबर गैस के जरिए बिजली की सप्लाई हुई। इस प्रकार से उन्होंने गांव की सूरत को बदलकर रख दिया।
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भ्रष्टाचार को खत्म करने का उठाया जिम्मा
अन्ना हजारे गांधीवादी विचारधारा पर चलने वाले एक सच्चे समाजसेवक हैं। वे किसी राजनीतिक पार्टी की जगह स्वतंत्र रुप से काम करने में भरोसा रखते हैं। अन्ना गांवों में गरीबी के लिए भ्रष्टाचार को जिम्मेदार मानते थे और इसके खिलाफ आंदोलन करने लगे। नब्बे के शुरुआत में महाराष्ट्र की सत्ता हिलने लगी थी। दिल्ली की राजनीति को गहराई से समझने वाले पुराने जानकार ये मानते हैं कि अगर अन्ना हजारे दिल्ली के रामलीला मैदान में आकर आंदोलन-अनशन न करते, तो न आम आदमी पार्टी का जन्म होता और न ही केजरीवाल दिल्लीवासियों का पसंदीदा चेहरा बन पाते।
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करप्शन के खिलाफ भूख हड़ताल
अन्ना हजारे 5 अप्रैल, 2011 को जंतर मंतर पर भूख हड़ताल पर बैठ गए। वे चाहते थे कि भ्रष्टाचारियों को सफाया होना चाहिए। भ्रष्ट नेताओं को सजा मिलनी चाहिए और इसके लिए जनलोकपाल ही सिर्फ हथियार है। करीब चार दिन तक चलने वाले इस भूख हड़ताल से दिल्ली की सत्ता यानी मनमोहन सिंह की सत्ता लड़खड़ाई और विलाशराव देशमुख के जरिए अन्ना के अनशन को तुड़वाया गया। उनके इस काम को देखते हुए पूरा देश उनके समर्थन में आ गया था। इसके अलावा उन्होंने लोकपाल बिल पास करवाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
सूचना के अधिकार कानून का श्रेय
दूसरे गांधी के नाम से मशहूर अन्ना हजारे को सूचना के अधिकार कानून के लिए लड़ने के लिए भी जाना जाता है। साल 1997 में अन्ना ने इस कानून के लि आंदोलन किया। साल 2003 में महाराष्ट्र की तत्कालीन सरकार ने इस कानून को ज्यादा सख्त और पारदर्शी बनाया। दो सालों बाद संसद ने सूचना का अधिकार कानून पास कर दिया।