जामताड़ा अब स्थान नहीं आइडिया है। फिशिंग का आइडिया। फांसने का तरीका। जब कोई आइडिया इनोवेटिव होता है तो दूसरे अपनाने लग जाते हैं। फिल्म की दुनिया तो इसे तुरंत इनकैश करने में लग जाता है। फिशिंग की पृष्ठभूमि में नेटफ्लिक्स पर वेब सीरीज़ बन गयी। नाम था- जामताड़ा सबका नंबर आएगा। सच पूछिए तो इस वेबसीरीज ने जामताड़ा को ग्लैमर दिया और दुनिया में कैपिटल ऑफ फिशिंग के तौर पर इसकी पहचान पर मुहर लगाई।
फिल्म में फिशिंग के जामताड़ा मॉडल को बारीकी से दिखाया और बताया गया है। धंधे में बेरोजगारों का इस्तेमाल होता है। बड़ी तादाद में सिम खरीदे जाते हैं, इस्तेमाल होते हैं और फिर नष्ट भी कर दिए जाते हैं। दो से लेकर पांच लड़के तक का समूह होता है। ये समूह अलग-अलग काम करते हैं। हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में ये अपने शिकार फंसाते हैं। आवाज़ बदलकर कॉल की जाती है। लड़की की आवाज़ का भी इस्तेमाल होता है। इस तरह अनजान लोगों को कॉल कर धोखा देना इस धंधे का बुनियादी सिद्धांत है। उनसे जरूरी ब्योरा लेकर उनके ही अकाउंट में सेंधमारी करना इसका क्रियाकलाप है।
2014 से 2018 तक जामताड़ा के ऑनलाइन जालसाजों ने इतने कारनामे किए कि देश और दुनिया की मीडिया में यह गुमनाम-सा स्थान सुर्खियों में आ गया। नामचीन अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं ने धोखाधड़ी के जामताड़ा मॉडल की कहानियां लिखीं। 2015 से 2017 के बीच सिर्फ दो सालों में 13 राज्यों की पुलिस 23 बार जामताड़ा के चक्कर लगा चुकी थी।
जो बात जामताड़ा के बारे में पता चली थी वह यह कि जामताड़ा ऑनलाइन धोखाधड़ी का एक ऐसा सेंटर बन चुका है जहां से बैंकिंग फ्रॉड की पूरी सीरीज़ चलती रही है। एक बिजनेस सेंटर चलता है जहां बैठे लोग लोगों से उनके अकाउंट का डिटेल लेते हैं और फिर बड़ी मात्रा में रकम की हेराफेरी कर लेते हैं। धोखाधड़ी के इस बिजनेस सेंटर का राष्ट्रीय नेटवर्क है। पुलिस ने इस नेटवर्क का पर्दाफाश कर लेने का दावा किया।
गिरफ्तार करना काफी मुश्किल
फरीदाबाद साइबर सेल के प्रभारी इंस्पेक्टर बसंत कुमार ने बताया ‘सात सदस्यों की टीम के साथ वहां 10 दिनों तक जमा रहा। किसी होटल या रेस्टोरेंट में रुकने पर ख़तरा था इसलिए गाड़ी में रात बिताई। स्थानीय सांठगांठ के कारण स्थानीय पुलिस की भी मदद नहीं ली। टीम के सभी सदस्यों ने पहनावा भी स्थानीय रखा ताकि ये भनक न लगे कि टीम के लोग बाहर से आए हैं। हम आपस में बातचीत भी कम ही करते थे। पूरी तरह से मुतमइन हो जाने के बाद टीम ने छापेमारी की और चार साइबर ठगों को गिरफ्तार किया’।
ऐसे फ्रॉड या ठगी करता है नेटवर्क
• बदमाश बैंक अधिकारी बन कर इस तरह से कॉल करते हैं जिससे कोई संदेह पैदा न हो। वे वन टाइम पासवर्ड यानी ओटीपी, क्रेडिट या डेबिट कार्ड नंबर, सीवीवी नबर, एक्सपायरी डेट, सिक्योर पासवर्ड, इंटरनेट बैंकिंग, एटीएम पिन, लॉग इन आइडी और पासवर्ड जैसी बातें चतुराई से जान लेते हैं।
• वजह के तौर पर अकाउंट को दोबारा एक्टिवेट करना, रिवार्ड प्वाइंट को रीडीम करना, अकाउंट को आधार से जोड़ना जैसी बेहद जरूरी बातें बताते हैं।
• फिर हासिल ब्योरे का इस्तेमाल ऑनलाइन ट्रांजेक्शन में कर लेते हैं।
• प्राप्त रकम को ई-वैलेट के जरिए देशभर में अपने नेटवर्क में बांट लेते हैं। ये ई-वैलेट फर्जी सूचनाओं के जरिए हासिल मोबाइल नंबर पर होते हैं।
साइबर क्राइम का बढ़ता खतरा
भारत में साइबर क्राइम 2019 की अंतिम तिमाही के मुकाबले 2020 की पहली तिमाही में 37 फीसदी बढ़ चुका है। कास्पर स्काई सिक्योरिटी नेटवर्क का दावा है कि उसने इस साल जनवरी से मार्च के दौरान 5 करोड़ 28 लाख 20 हजार 874 स्थानीय साइबर ख़तरों को रोका और उन्हें ब्लॉक किया। पिछले साल की अंतिम तिमाही में यही संख्या 4 करोड़ 7 लाख 57 थी। वेब थ्रेट के मामले में भारत दुनिया में 27वें नंबर पर है। बीते साल अंतिम तिमाही में भारत की रैंकिंग 32 वें नंबर पर थी।
ऑनलाइन ठगी से बचने के लिए क्या करें
• पहली बात यह है कि कभी कोई सूचना फोन पर किसी को साझा न करें।
• ओटीपी, सीवीवी नंबर जैसी गोपनीय जानकारी तो किसी भी सूरत में साझा करने से बचें।
• संदिग्ध कॉल आते ही उसकी सूचना स्थानीय पुलिस को दें।
• ऐसा लगता है कि कोई सूचना साझा हो चुकी है तो तुरंत साइबर पुलिस थाने को सूचित करें।
• अपने कस्टमर केयर से भी तुरंत संपर्क करें।
(प्रेम कुमार स्वतंत्र पत्रकार हैं।)