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सैटेलाइट इमेजिंग पर सहमति असम और मिजोरम के बीच सीमा विवाद के बाद केंद्र ने सैटेलाइट इमेजिंग ( Satellite Imaging ) के जरिए पूर्वोत्तर राज्यों की सीमाएं तय करने का फैसला लिया था। जिस पर दोनों राज्य की सरकारों ने अपनी सहमति जता दी है। सरकार से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि सैटेलाट इमेजिंग के जरिए सीमा विवाद सुलझाने पर सहमति इसलिए बनी है कि यह तरीका वैज्ञानिक है। इसलिए इसमें गलती की गुंजाइश कम होगी। सीआरपीएफ की तैनाती का स्वागत असम-मिजोरम सरकार ( Assam Mizoram Government ) की ओर से गुरुवार को जारी साझा बयान मुताबिक दोनों राज्य सीमावर्ती इलाकों में शांति स्थापित करने को लेकर राजी हुए हैं। केंद्र की ओर से सीआरपीएफ तैनात करने के फैसले का भी स्वागत किया है। गुरुवार को हुई द्विपक्षीय बैठक में असम की ओर से वरिष्ठ मंत्री अतुल बोरा और मिजोरम की ओर से गृह मंत्री लालचमलियाना बैठक में शामिल हुए।
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26 जुलाई को हुई थी 6 लोगों की मौत इससे पहले 26 जुलाई 2021 को असम-मिजोरम सीमा पर गोलीबारी के बाद दोनों राज्यों के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया गया था। गोलीबारी में 6 पुलिसकर्मियों और एक आम नागरिक की मौत हुई थी। 50 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। इस घटना के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दखल देते हुए दोनों राज्यों की सीमा पर पैरामिलिट्री फोर्स तैनात करने का आदेश दिया था। यह भी पढ़ें
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क्या है असम-मिजोरम सीमा विवाद? असम-मिज़ोरम के बीच यह विवाद 1875 की एक अधिसूचना की पैदाइश है। अधिसूचना लुशाई पहाड़ियों को कछार के मैदानी इलाकों से अलग करता है। वर्तमान में मिजोरम और असम आपस में 164.6 किलोमीटर सीमा साझा करते हैं। 1972 से पहले मिजोरम असम का ही हिस्सा था। यह लुशाई हिल्स नाम से असम का एक जिला हुआ करता था जिसका मुख्यालय आइजोल था। जब मिजोरम लुशाई हिल्स से नाम से असम का हिस्सा था तब भी इसकी मिजो आबादी और लुशाई हिल्स का क्षेत्र निश्चित था। मिजोरम सरकार अधिसूचना के आधार पर अपनी सीमा का दावा करती है। असम सरकार इसे नहीं मानती है। असम सरकार 1933 में चिन्हित की गई सीमा के मुताबिक अपना दावा करती है। विवाद की असली जड़ एक-दूसरे पर ओवरलैप 1318 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा है, जिस पर दोनों सरकारें दावा छोड़ने को तैयार नहीं हैं। दरअसल, 1875 का नोटिफ़िकेशन बंगाल ईस्टर्न फ़्रंटियर रेगुलेशन एक्ट, ( BEFR Act ) 1873 के तहत आया था। जबकि 1933 में जो नोटिफ़िकेशन आया उस वक्त मिजो समुदाय के लोगों से सलाह मशविरा नहीं किया गया था। इसलिए मिजो लोग 1933 के नोटिफ़िकेशन का विरोध करते हैं।