देश में कोरोना (Coronavirus) की दूसरी लहर का कहर अब थम सा गया है। वहीं, विशेषज्ञों ने जांच में पाया कि कोरोना के डेल्टा वेरिएंट की वजह से वायरस अधिक खतरनाक साबित हुआ। इसके अलावा, अब एक शोध में सामने आया है कि देश में जिन इलाकों में प्रदूषण का स्तर अधिक रहा, वहां कोरोना वायरस ज्यादा संक्रामक और जानलेवा साबित हुआ।
विशेषज्ञों के अनुसार, वायु गुणवत्ता और अधिक पीएम-2.5 (पार्टिकुलेट मैटर) उत्सर्जन करने वाले क्षेत्रों में संक्रमण और इससे संबंधित मौतों की संभावना अधिक रही। देशभर में हुए शोध के बाद विशेषज्ञों ने दावा किया है कि सभी राज्यों में सांख्यिकी विश्लेषण के दौरान कोरोना और पार्टिकुलेट मैटर-2.5 के बीच संबंध स्थापित है। इसमें पार्टिकुलेट मैटर 2.5 की सांद्रता और कोरोना से मौत के बीच सीधा संबंध 0.61 का है।
यह भी पढ़ें
- रिपोर्ट: कोविशील्ड वैक्सीन की दो खुराक के बीच दस महीने का अंतर रखें तो यह ज्यादा कारगर साबित होगी
हाल ही में यह शोध स्टेब्लिशिंग ए लिंक बिटविन फाइन पार्टिकुलेट मैटर-2.5 जोन एंड कोविड-19 ओवर इंडिया नाम के शीर्षक से जर्नल अर्बन क्लाइमेट में प्रकाशित हुआ था। इस शोध में देशभर से चार संस्थानों जिसमें भुवनेश्वर स्थित उत्कल यूनिवर्सिटी, पुणे स्थित आईआईटीएम, राउरकेला स्थित एनआईटी और आईआईटी-भुवनेश्वर शामिल थे। इस शोध को आंशिक तौर पर भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की ओर से वित्तीय सहायता दी गई थी। शोध के लिए 36 राज्यों से 16 जिलों को चिन्हित किया गया था। इसमें महाराष्ट्र के मुंबई और पुणे भी शामिल थे। शोध टीम के प्रमुख और उत्कल यूनिवर्सिटी के सहायक प्रोफेसर सरोज कुमार साहू के मुताबिक, हमने यह देखने के लिए सांख्यिकीय विश्लेषण किया कि जिला स्तर के प्रदूषण डाटा और कोविड-19 केसों के बीच कोई संबंध तो नहीं। हालांकि, यूरोप में दो डाटा सेटों के बीच संबंध तलाशने के लिए कुछ रिसर्च हुए हैं, लेकिन भारत में यह पहला शोध है। साहू के अनुसार, शोध में सामने आया कि जिला स्तर के प्रदूषण और कोविड-19 मामलों के बीच सीधा संबंध है और यह कोरिलेशन-0.61 है। इसके साथ ही परिवहन और औद्योगिक गतिविधियों में भारी मात्रा में जीवाश्म ईंधन जैसे पेट्रोल, डीजल और कोयला आदि के इस्तेमाल वाले क्षेत्रों में कोरोना के सबसे अधिक नए केस सामने आए।
यह भी पढ़ें
-कहीं आपको भी तो नहीं लगा दी गई कोरोना की फर्जी वैक्सीन, असली और नकली टीके की ऐसे करें पहचान
प्रोफेसर साहू के अनुसार, शोध के लिए टीम ने तीन प्रकार से आंकड़े जुटाए। इसमें नेशनल इमिशन इन्वेंट्री से वर्ष 2्र19 के पार्टिकुलेट मैटर-2.5 की सूची हासिल की। इसे वैज्ञानिकों ने विकसित किया। इसके बाद भारत सरकार की वेबसाइट से 5 नवंबर 2020 तक कोरोना संक्रमण और संबंधित मौतों के आंकड़ों को जुटाया गया। इसके अलावा, देश में 16 जिलों से एयर क्वॉलिटी इंडेक्स का डाटा यानी वायु गुणवत्ता सूचकांक एकत्रित किया गया। वैज्ञानिकों की ओर से विकसित नेशनल इमिशन इन्वेंट्री के अनुसार, उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र सबसे अधिक प्रदूषण उत्सर्जन करने वाला राज्य है। हालांकि, प्रोफेसर साहू ने यह भी कहा कि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि प्रति व्यक्ति पीएम-2.5 उत्सर्जन के मामले में महाराष्ट्र यूपी से आगे है। महाराष्ट्र में जहां 828.3 गीगाग्राम प्रति वर्ष पीएम-2.5 दर्ज किया गया, वहीं उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा 1138.08 है।