यह भी पढें: कौन थे डॉ. भीमराव आम्बेडकर और उन्होंने हमारी पीढ़ी को क्या दिया? 14 अप्रैल 1891 को एक अस्पृश्य और दलित जाति में जन्मे डॉ. आम्बेडकर ने अपना पूरा जीवन ही भारतीय समाज को विभिन्न जातियों में ऊंच-नीच के भेदभाव और छुआछूत की बुराई को खत्म करने में लगा दिया। उनका यह प्रयास भारतीय संविधान में रुप में दिखाई दिया जहां अस्पृश्यता और किसी भी प्रकार के भेदभाव को आपराधिक माना गया। इससे न केवल भारतीय समाज में जातिगत भेदभाव कम हुआ वरन लोगों में समानता और आपसी समरसता भी बढ़ी।
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भारतीय समाज से जातिगत भेदभाव की बुराई दूर करने के लिए उन्होंने 1956 में दलित बौद्ध आंदोलन की शुरुआत की थी। उसमें लगभग पांच लाख लोग शामिल हुए जिन्हें नवयान बौद्ध या नियो-बुद्धिज्म कहा गया। इस तरह परंपरागत हिंदू धर्म को त्याग कर लाखों लोगों ने बौद्ध धर्म स्वीकार भारत में एक नई राह को चुना जिससे पुरातनपंथी हिंदू समाज को अपनी आंतरिक बुराई दूर करने के लिए प्रेरित किया। दलितों की भलाई के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों के कारण ही वह भारतीय समाज में अपना खास स्थान रखते हैं। इस वर्ष 14 अप्रैल 2021 को देश उनकी 130वीं जन्मतिथि मना रहा है।
भारतीय समाज से जातिगत भेदभाव की बुराई दूर करने के लिए उन्होंने 1956 में दलित बौद्ध आंदोलन की शुरुआत की थी। उसमें लगभग पांच लाख लोग शामिल हुए जिन्हें नवयान बौद्ध या नियो-बुद्धिज्म कहा गया। इस तरह परंपरागत हिंदू धर्म को त्याग कर लाखों लोगों ने बौद्ध धर्म स्वीकार भारत में एक नई राह को चुना जिससे पुरातनपंथी हिंदू समाज को अपनी आंतरिक बुराई दूर करने के लिए प्रेरित किया। दलितों की भलाई के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों के कारण ही वह भारतीय समाज में अपना खास स्थान रखते हैं। इस वर्ष 14 अप्रैल 2021 को देश उनकी 130वीं जन्मतिथि मना रहा है।