ताजा जानकारी के मुताबिक अब आगामी 15 जनवरी को सरकार और किसान नेताओं के बीच नौवें चरण की बैठक होगी। सूत्रों की मानें तो शुक्रवार को बैठक में सरकार ने किसानों से कहा कि अब सुप्रीम कोर्ट ही फैसला करे तो बेहतर है।
दरअसल, दिल्ली की सीमाओं पर लगभग करीब डेढ़ महीने से प्रदर्शन कर रहे किसान तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़े हुए हैं। बीते 26 नवंबर से शुरू हुआ किसानों का प्रदर्शन सर्दी-बारिश के बावजूद लगातार आगे बढ़ता रहा। सर्दी के चलते किसानों की दर्दनाक मौत जैसी घटना भी प्रदर्शनकारियों के हौसले को डिगा नहीं पाई है। आइए जानते हैं अब तक किसान आंदोलन में क्या-क्या हुआ।
4 जनवरीः किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच बीते 4 जनवरी को सातवें दौर की बातचीत बेनतीजा रही। जहां किसान इस मांग पर अड़े रहे कि कृषि कानूनों को वापस लिया जाए, सरकार केवल इनमें संशोधन की ही चर्चा करती दिखी। इस दिन दोनों पक्षों के बीच 8 जनवरी यानी शुक्रवार को नौवें चरण की बैठक निर्धारित की गई।
30 दिसंबरः सरकार और किसान संगठनों के बीच छठे दौर की बैठक दिल्ली के विज्ञान भवन में हुई। इसमें 40 किसान संगठनों ने भाग लिया और बातचीत में चार में से दो प्रस्ताव पर रजामंदी भी हो गई थी। एमएसपी और कानून वापस लिए जाने पर चार जनवरी को अगली बैठक की तारीख निर्धारित की गई और किसानों ने आंदोलन जारी रखा।
23-24 दिसंबर: 20 राज्यों के 3,13,363 किसानों ने नए कृषि कानूनों के समर्थन में सरकार के पास अपने हस्ताक्षर के साथ एक पत्र भेजा। वहीं, केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने कहा कि लंबे वक्त से देश के कृषि क्षेत्र में इन सुधारों की आवश्यकता महसूस की जा रही थी और चर्चा के लिए सरकार हमेशा तैयार है।
20 दिसंबर: किसान आंदोलन के दौरान दम तोड़ने वाले 31 किसानों को सीमा पर श्रद्धांजलि दी गई। प्रदर्शनकारी किसानों ने इन मृत्यु के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया और अपने साथियों को शहीद का दर्जा दिया।
17 दिसंबर: सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के बार्डर पर डटे प्रदर्शनकारी किसानों को हटाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई की। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से अदालत ने सवाल किया कि क्या केंद्र सरकार हाल ही में लागू किए गए कृषि कानूनों पर तब तक के लिए रोक लगा सकती है, जब तक कि कोर्ट इस केस की सुनवाई नहीं कर लेती?
15 दिसंबर: पीएम मोदी ने विपक्ष पर तीखा हमला बोला और कहा कि उन्होंने किसानों को गुमराह करने वाला बयान दिया। पीएम मोदी ने किसानों के प्रति केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता को भी दोहराते हुए कहा कि किसानों के हितों की रक्षा करना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। उसी दिन एक 65 वर्षीय किसान ने सिंघू बॉर्डर प्रदर्शन स्थल पर सुसाइड कर ली। सुसाइड नोट में उसने लिखा कि वह किसानों की दुर्दशा को देख नहीं सकता।
12 दिसंबर: पंजाब और हरियाणा समेत दिल्ली हाईवे पर स्थित सभी टोल प्लाजाओं पर किसानों द्वारा कब्जा कर लिया गया। जबकि सिंघु, टीकरी, चिल्ला और गाजीपुर बॉर्डर पर किसान अपना डेरा डाले रहे। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने विपक्ष पर किसानों को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए कहा कि विपक्षी दल किसानों को फैसले तक नहीं पहुंचने देना चाहते हैं।
8 दिसंबर: किसानों ने भारत बंद बुलाया। देशभर में इस बंद का मिलाजुला असर देखने को मिला। रविवार सुबह 11 से दोपहर 3 बजे तक किसानों ने सड़कों को जाम कर दिया था। इसके चलतले हाईवे पर वाहन सवारों को वापस लौटना पड़ा। बॉर्डर पर भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया।
3 दिसंबर: किसान संगठनों और सरकार के बीच दोबारा 7 घंटे बातचीत हुई। किसानों ने केंद्र सरकार के तीनों मंत्रियों से दो टूक कहा कि कृषि कानूनों की वापसी तक आंदोलन चलता रहेगा। सरकार ने किसानों को कुछ मांगों में नरम रुख भी दिखाया। हालांकि किसान सभी मांगों पर अड़े रहे।
1 दिसंबर: सरकार और किसान संगठनों ने विज्ञान भवन में 3 घंटे बैठक की और यह बेनतीजा रही। किसान नेता सरदार चंदा सिंह ने कहा कि कृषि मंत्री ने हमसे कहा कि एक छोटी कमेटी बना दो। सरकार उस छोटी कमेटी से इस सब विषयों पर बात करेगी। हालांकि किसानों ने इसे भी ठुकरा दिया।
27 नवंबर: दिल्ली की सीमाओं खास तौर पर सिंघु बॉर्डर पर बड़ी संख्या में पहुंचे किसानों पर ठंडे पानी की बौछारें डाली गईं। केंद्र सरकार ने प्रदर्शनकारी किसानों को बुराड़ी स्थित निरंकारी ग्राउंड में विरोध-प्रदर्शन की अनुमति दी। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने चर्चा के लिए किसानों को आमंत्रित भी किया, लेकिन किसानों ने निरंकारी ग्राउंड जाने का ऑफर ठुकरा दिया।
26 नवंबर: अपनी मांगों को लेकर हजारों संख्या में किसानों ने दिल्ली की ओर कूच किया। दिल्ली पुलिस ने बैरिकेड्स लगाकर किसानों को राजधानी में आने से रोक दिया। दिल्ली-गुरुग्राम एक्सप्रेस-वे पर यात्रियों को पूरे दिन भारी ट्रैफिक जाम का सामना करना पड़ा। इसके साथ ही मेट्रो सेवाएं भी कुछ वक्त के लिए निलंबित की गईं।
8 दिसंबर: किसानों ने भारत बंद बुलाया। देशभर में इस बंद का मिलाजुला असर देखने को मिला। रविवार सुबह 11 से दोपहर 3 बजे तक किसानों ने सड़कों को जाम कर दिया था। इसके चलतले हाईवे पर वाहन सवारों को वापस लौटना पड़ा। बॉर्डर पर भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया।
3 दिसंबर: किसान संगठनों और सरकार के बीच दोबारा 7 घंटे बातचीत हुई। किसानों ने केंद्र सरकार के तीनों मंत्रियों से दो टूक कहा कि कृषि कानूनों की वापसी तक आंदोलन चलता रहेगा। सरकार ने किसानों को कुछ मांगों में नरम रुख भी दिखाया। हालांकि किसान सभी मांगों पर अड़े रहे।
1 दिसंबर: सरकार और किसान संगठनों ने विज्ञान भवन में 3 घंटे बैठक की और यह बेनतीजा रही। किसान नेता सरदार चंदा सिंह ने कहा कि कृषि मंत्री ने हमसे कहा कि एक छोटी कमेटी बना दो। सरकार उस छोटी कमेटी से इस सब विषयों पर बात करेगी। हालांकि किसानों ने इसे भी ठुकरा दिया।
27 नवंबर: दिल्ली की सीमाओं खास तौर पर सिंघु बॉर्डर पर बड़ी संख्या में पहुंचे किसानों पर ठंडे पानी की बौछारें डाली गईं। केंद्र सरकार ने प्रदर्शनकारी किसानों को बुराड़ी स्थित निरंकारी ग्राउंड में विरोध-प्रदर्शन की अनुमति दी। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने चर्चा के लिए किसानों को आमंत्रित भी किया, लेकिन किसानों ने निरंकारी ग्राउंड जाने का ऑफर ठुकरा दिया।
26 नवंबर: अपनी मांगों को लेकर हजारों संख्या में किसानों ने दिल्ली की ओर कूच किया। दिल्ली पुलिस ने बैरिकेड्स लगाकर किसानों को राजधानी में आने से रोक दिया। दिल्ली-गुरुग्राम एक्सप्रेस-वे पर यात्रियों को पूरे दिन भारी ट्रैफिक जाम का सामना करना पड़ा। इसके साथ ही मेट्रो सेवाएं भी कुछ वक्त के लिए निलंबित की गईं।