हालांकि इन 24 बच्चों में से 16 ने ट्रेन में ही जन्म लिया जबकि अन्य को नजदीकी अस्पताल पहुंचाया गया। आईए जानते हैं कुछ ऐसे ही केस जिन्होंने कोरोना संकट के बीच एक नई जिंदगी को जन्म दिया…
लॉकडाउन-4 में बिना मास्क के घर से बाहर घूम रहे थे लोग, पुलिस ने वसूला 59800 का जुर्माना केस-1 21 वर्षीय कांति बंजारी को लंबे संघर्ष के बाद श्रमिक स्पेशल ट्रेन तक पहुंचने का मौका मिला। वो इस ट्रेने के जरिये बाकी लोगों की ही तरह अपने घर लौट रही थीं। लेकिन इस दौरान वो अकेली नहीं थी उनके गर्भ में एक नन्हीं जान दुनिया देखने के लिए बेताब थी। अमृतसर से छत्तीसगढ़ जा रही ट्रेन में कांति को लेबर पेन (प्रसव पीड़ा ) हुए, ट्रेन मध्यप्रदेश के पांढुर्ना स्टेशन पर रुकी और यहां कांति ने चिकित्सकों की मौजूदगी में एक स्वस्थ्य लड़के को जन्म दिया।
केस-2 इसी तरह 27 वर्षीय मधु कुमारी ने भी मंगलवार को अहमदाबाद-बांदा ट्रेन में एक लड़की को जन्म दिया। बच्ची के इस जन्म में ट्रेन में मौजूद कुछ महिला साथियों ने मधु की मदद की। इन्होंने टॉयलेट से पानी निकाला और दूसरों से तौलिए और सैनिटाइटर एकत्र किए। उसके दर्द को कम करने के लिए, उन्होंने उसे एक बैग के ऊपर लेटा दिया।
ट्रेन के 110 किमी दूर झांसी रेलवे स्टेशन पहुंचने के बाद ही नवजात और मां का मेडिकल हुआ।
मधु के पति मनोज कुमार जो यूपी के रायबरेली से हैं ने बताया कि “जब मेरी पत्नी को दर्द होने लगा तो तो मुझे लगा कि मैं उन दोनों को खो दूंगा। मैंने खुद को इस यात्रा के लिए जिम्मेदार ठहराया। लेकिन हमारे पास और कोई विकल्प नहीं था। ”
केस-3 जालंधर-मुरादाबाद ट्रेन में 23 वर्षीय सुभद्रा, और जिरानिया-खगड़िया ट्रेन में 21 वर्षीय मिंटू देवी ने ट्रेन में ही रेलवे पुलिस और चिकित्सकों की देख रेख में बच्चों को जन्म दिया।
अब मेट्रो ट्रेन चलाने की तैयारी में DMRC, नए बदलावों के साथ यात्रा होगी संभव केस-4 इसी तरह जोधपुर से बस्ती के लिए श्रमिक ट्रेन में सवार हुए 29 वर्षीय महिला का सारा दर्द और पीड़ा उस वक्त शोक में बदल गया जब 29 वर्षीय गर्भवती महिला ने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया। इनमें से कुछ देर बाद ही एक बच्चे ने दम तोड़ दिया। जबकि दूसरा काफी बीमार था, ऐसे में उसे नजदीकी अस्पताल में भर्ती किया गया।
रेलवे ( Railway ) अधिकारियों की मानें तो चिकित्सकीय आपात स्थिति से निपटने के लिए हमारे पास एक सुदृढ़ व्यवस्था है। जब भी किसी यात्री को जरूरत होती है, हमारे कर्मी उस स्टेशन को अलर्ट कर देते हैं जहां चिकित्सकीय देखभाल उपलब्ध है। स्टेशन के पास रेलवे कॉलोनियों में रहने वाले चिकित्सक हमेशा मदद के लिए उपलब्ध रहते हैं।
आपको बता दें कि रेलवे की ओर से अब तक 2050 श्रमिक ट्रेनें चलाई जा चुकी हैं। ट्रेनों में सबसे ज्यादा सात बच्चों का जन्म पश्चिम मध्य रेलवे में हुआ है।